________________
555555555555555555555555555555555555
(३) ओमराइणिए समणे णिगंथे महाकम्मे महाकिरिए अणायावी असमिए धम्मस्स अणाराहए ,
)))
ॐ
भवति।
)))
))
))
))))
))
)555555555555555559))))))))
))
))))
))
(४) ओमराइणिए समणे णिग्गंथे अप्पकम्मे अप्पकिरिए आयावी समिए धम्मस्स आराहए भवति। ॐ महाकर्म-अल्पकर्म-निर्ग्रन्थी-पद MAHATKARMA-ALPAKARMA-NIRGRANTH-PAD (SEGMENT OF ASCETICS WITH LONG AND SHORT DURATION OF KARMAS)
४२७. चत्तारि णिग्गंथीओ पण्णत्ताओ, तं जहा
(१) राइणिया समणी णिग्गंथी एवं चेव ४। [महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता म धम्मस्स अणाराधिया भवति ।
(२) [ रातिणिया समणी णिगंथी अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता धम्मस्स आराहिया 卐 भवति ।
(३) [ ओमरातिणिया समणी णिग्गंथी महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति ।
(४) [ ओमरातिणिया समणी णिग्गंथी अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता धम्मस्स आराहिया भवति ]
४२६. निर्ग्रन्थ चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई श्रमण निर्ग्रन्थ रात्निक (दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ) होकर फ़ भी महाकर्मा (दीर्घकाल तक भोगे जाने वाले कर्मों वाला), महाक्रिय (दीर्घकालीन कठोर क्रिया करने
वाला), अनातापी (अतपस्वी) और असमित (समिति-रहित) होने के कारण धर्म का अनाराधक + होता है। 4 (२) कोई रात्निक श्रमण निर्ग्रन्थ अल्पकर्मा, अल्पक्रिय (अल्पकालीनक्रिया वाला), आतापी म (तपस्वी) और समित (समिति वाला) होने के कारण धर्म का आराधक होता है। म (३) कोई निर्ग्रन्थ श्रमण अवमरालिक (अल्पकालीन दीक्षापर्याय वाला) होकर महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापी और असमित होने के कारण धर्म का अनाराधक होता है।
(४) कोई अवमरालिक श्रमण निर्ग्रन्थ अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापी और समित होने के कारण ॐ धर्म का आराधक होता है।
४२७. निर्ग्रन्थियाँ चार प्रकार की होती हैं, जैसे-सूत्र ४२६ में निर्ग्रन्थ के विषय में कहा है वैसे ही म यहाँ निर्ग्रन्थ (साध्वी) का स्वरूप उसी प्रकार समझना चाहिए। निर्ग्रन्थ के स्थान पर निर्ग्रन्थी समझें।
बाकी अर्थ सूत्र ४२६ के अनुसार है।
)))
)))
))
)))
))
))
))
))
))
))
)
卐)))))
4
चतुर्थ स्थान
(529)
Fourth Sthaan
5
5
B)))55555555555555555555555555558
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org