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विवेचन - विशेष शब्दों के अर्थ - प्रव्राजनाचार्य - दीक्षा देने वाले गुरु । उपस्थापनाचार्य - महाव्रतों की
5 आरोपणा कराने वाले । उद्देशनाचार्य -अंग आदि आगमों का अध्ययन करने में मार्गदर्शन करने वाले ।
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वाचनाचार्य - शिष्यों को शास्त्र की वाचना देने वाले । धर्माचार्य-धर्म का बोध देने वाले ।
प्रव्रजन अन्तेवासी - जिस गुरु ने शिष्य को दीक्षा दी है, वह शिष्य उनका प्रव्रजन अन्तेवासी माना जाता है । उपस्थापनान्तेवासी - जिनके पास छेदोपस्थानीयचारित्र रूप महाव्रतों की आरोपणा ली हो, वह उनका उपस्थापनान्तेवासी होता है। धर्मान्तेवासी - जिनके पास धर्म का बोध प्राप्त किया हो, वह उनका
5 धर्मान्तेवासी कहा जाता है। उद्देशनान्तेवासी - जिनके पास शास्त्र अध्ययन के लिए मार्गदर्शन प्राप्त किया है, वह उनका उद्देशनान्तेवासी होता है। वाचनान्तेवासी - जिनके पास शास्त्र की वाचना ली हो, वह उनका फ्र वाचनान्तेवासी कहलाता है।
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इस प्रकार गुरु के तीन रूप होते हैं-दीक्षा गुरु, विद्या गुरु और धर्म गुरु | शिष्य के भी तीन रूप होते हैं-दीक्षा शिष्य, विद्या शिष्य तथा धर्म शिष्य । Elaboration-TECHNICAL TERMS
Pravraajanacharya-the preceptor who initiates into the order. Upasthapanacharya-the preceptor who formally supervises accepting of great vows. Uddeshanacharya-the preceptor who guides the study of Angas and other Agams. Vachanacharya-the preceptor who recites the scriptures to disciples. Dharmacharya-the preceptor who preaches religion in general.
Pravrajan antevasi-for the preceptor who initiates someone into the order, this disciple is Pravrajan antevasi. Upasthapan antevasifor the preceptor who formally supervises someone's accepting of great vows, this disciple is Upasthapana antevasi. Dharma antevasi-for the preceptor who preaches religion to someone, this disciple is Dharma antevasi. Uddeshana antevasi-for the preceptor who guides someone in the study of Angas and other Agams, this disciple is Uddeshan antevasi. Vaachana antevasi-for the preceptor who recites the scriptures to someone, this disciple is Vaachana antevasi.
महत्कर्म - अल्पकर्म - निर्ग्रन्थ- पद MAHATKARMA ALPAKARMA NIRGRANTH-PAD (SEGMENT OF ASCETICS WITH LONG AND SHORT DURATION OF KARMIC BONDAGE) ४२६. चत्तारि णिग्गंथा पण्णत्ता, तं जहा
(१) राइणिए समणे णिग्गंथे महाकम्मे महाकिरिए अणायावी असमिते धम्मस्स अणाराहए भवति ।
(२) राइणिए समणे णिग्गंथे अप्पकम्मे अप्पकिरिए आयावी समिए धम्मस्स आहए भवति ।
Sthaananga Sutra (1)
फ्र
स्थानांगसूत्र (१)
(528)
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