________________
卐 उपकार-पद UPAKAR-PAD (SEGMENT OF GENEROSITY)
३६१. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-पत्तोवए, पुष्फोवए, फलोवए, छायोवए। ___ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पत्तोवा रुक्खसमाणे, पुष्फोवा रुक्खसमाणे, 卐 फलोवा रुक्खसमाणे, छायोवा रुक्खसमाणे।
३६१. वृक्ष चार प्रकार के होते हैं-(१) पत्तों से युक्त (जैसे-तेंदू वृक्ष); (२) फूलों से युक्त (जैसेॐ गुलाब); (३) फलों से युक्त (जैसे-आम); और (४) छाया से युक्त (जैसे-वट वृक्ष)।
(परोपकारी वृत्ति की अपेक्षा) पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष स्वयं तो सम्पन्न रहता है, किन्तु दूसरों को कुछ नहीं देता; (२) कोई धनादि के अभाव में भी अपने मधुर व्यवहार से दूसरों को प्रसन्न कर देता है; (३) कोई धनादि देकर दूसरों के अभाव दूर कर देता है; और (४) कोई मधुर वचन, आश्वासन आदि देकर अपनी छत्रछाया में दूसरों को आश्रय देता है।
361. Vriksha (trees) are of four kinds--(1) with leaves (like tendu), (2) with flowers (like rose), (3) with fruits (like mango), and (4) with shade (like banyan tree).
Purush (men) are also of four kinds (in context of generosity)(1) Some person is wealthy but does not give anything to anybody, (2) some person pleases others by his sweet behaviour in spite of lack of wealth, (3) some person removes paucity of others simply by giving
wealth and other things, and (4) some person gives refuge to others 4 under his wings with sweet words of assurance.
आश्वास-पद ASHVAAS-PAD (SEGMENT OF REST)
३६२. भारण्णं वहमाणस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता, तं जहा१. जत्थ णं अंसाओ अंसं साहरइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। २. जत्थवि य णं उच्चारं वा पासवणं वा परिदेवति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते।
३. जत्थवि य णं णागकुमारावासंसि वा सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उवेति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते।
४. जत्थवि य णं आवकहाए चिट्ठति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। ___ एवामेव समणोवासगस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता, तं जहा
१. जत्थवि य णं सीलव्वय-गुणव्वय-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं पडिवज्जति, म तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। म २. जत्थवि य णं सामाइयं देसावगासियं सम्ममणुपालेइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते।।
))5555555555555555555555555555555555558
धमक
चतुर्थ स्थान
(493)
Fourth Sthaan
प्रभ
卐
))))))))))))))
)))5555555
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org