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____३. जत्थवि य णं चाउद्दसट्ठमुद्दिवपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेइ, तत्थवि य से
एगे आसासे पण्णत्ते। म ४. जत्थवि य गं अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणा-झूसणा-झूसिते भत्तपाण-पडियाइक्खिते * पाओवगए कालमणवकंखमाणे विहरति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते।
३६२. भार को वहन करने वाले पुरुष के लिए चार आश्वास (विश्राम) स्थान होते हैं-(१) प्रथम ॐ आश्वास-वह अपने भार को एक कन्धे से दूसरे कन्धे पर रखता है, (२) दूसरा आश्वास-वह अपना # भार भूमि पर रखकर मल-मूत्र त्यागता है, (३) तीसरा आश्वास-वह किसी नागकुमार या सुपर्णकुमार
आदि के देवस्थान पर रात्रि में निवास करता है, और (४) चौथा आश्वास-वह अपने घर पहुंचकर भार + से पूर्ण रूप में मुक्त होकर यावज्जीवन सुखपूर्वक रहता है।
इसी प्रकार श्रमणोपासक (श्रावक) के चार आश्वास (विश्राम) स्थान होते हैं-(१) जब वह 卐 शीलव्रत, गुणव्रत रूप पापों से निवृत्ति और पौषधोपवास आदि को स्वीकार करता है (पहला आश्वास), - (२) जब वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत का सम्यक् प्रकार से परिपालन करता है (दूसरा ॐ आश्वास), (३) जब वह अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णमासी के दिन परिपूर्ण पौषध का सम्यक् 5 प्रकार परिपालन करता है (तीसरा आश्वास), और (४) जिस समय वह जीवन के अन्त में * मारणान्तिक संलेखना की आराधना से युक्त होकर भक्तपान का त्याग कर पादोपगमन संथारा स्वीकार + कर मरण की आकांक्षा नहीं करता हुआ समय व्यतीत करता है (चौथा आश्वास)।
362. For a person carrying weight there are four ashvaas (places of rest) (1) First ashvaas (place of rest)-he shifts his load from one shoulder to the other. (2) Second ashvaas-he places his load on the ground and relieves himself of nature's call. (3) Third ashvaas-he stays at some temple of Naag Kumar or Suparna Kumar for the night. (4) Fourth ashvaas—he reaches home, gets completely free of the load and lives happily all his life.
In the same way for a shramanopasak (shravak or Jain layman) there are four ashvaas (places of rest)-(1) When he moves away from sins by
accepting sheelwrats (vows of morality), gunavrats (restraints that $ reinforce the practice of anuvrats), paushadhopavas (partial ascetic vow
and fasting) etc. (first ashvaas). (2) When he properly observes samayik vrat (Jain system of periodic meditation performed in slots of 45 minutes) and deshavakashik vrat (limiting the area of one's movement) (second ashvaas). (3) When he properly observes complete paushadh (partial ascetic vow under which a householder lives like an initiated ascetic for a specific period) on eighth, fourteenth and fifteenth days of a
स्थानांगसूत्र (१)
(494)
Sthaananga Sutra (1)
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