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up making him a friend. (4) Some man thinks of going to make someone an enemy and ends up making him an enemy.
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३५८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- अप्पणो णाममेगे पत्तियं करेति णो परस्स, परस्स णाममेगे पत्तियं करेति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि पत्तियं करेति परस्सवि, एगे जो अप्पणो पत्तियं करेति णो परस्स ।
३५८. पुरुष चार प्रकार के होते हैं - (१) कोई पुरुष अपने आप से प्रीति करता है, किन्तु दूसरे से नहीं करता; (२) कोई दूसरे से प्रीति करता है, किन्तु अपनों से (अपने से) नहीं करता; (३) कोई अपनों से भी और पर से भी प्रीति करता है; और (४) कोई न अपनों से और न पर से भी प्रीति करता है।
358. Purush (men) are of four kinds-(1) Some man loves himself (and his kin) but not others. (2) Some man loves others but not himself ( and his kin). ( 3 ) Some man loves himself ( and his kin) as well as others. (4) Some man neither loves himself (and his kin) nor others.
३५९. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति, पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेति, अप्पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति, अप्पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेति ।
३५९. पुरुष चार प्रकार के होते हैं - (१) कोई पुरुष दूसरे के मन में प्रीति उत्पन्न करना चाहता है और प्रीति उत्पन्न करता है; (२) कोई दूसरे के मन में प्रीति उत्पन्न करना चाहता है, किन्तु और अधिक अप्रीति उत्पन्न कर देता है; (३) कोई दूसरे के मन में अप्रीति उत्पन्न करना चाहता है, किन्तु प्रीति उत्पन्न कर देता है; और (४) कोई दूसरे के मन में अप्रीति उत्पन्न करना चाहता है और अप्रीति उत्पन्न कर देता है।
359. Purush (men) are of four kinds-(1) Some man wants to invoke friendship in others and does so. (2) Some man wants to invoke friendship in others and ends up invoking animosity. (3) Some man wants to invoke animosity in others and ends up invoking friendship. (4) Some man wants to invoke animosity in others and does so.
३६०. पुरुष चार प्रकार के होते हैं - (१) कोई पुरुष अपने मन में प्रीति का प्रवेश ( - संचार) कर लेता है, किन्तु दूसरे के मन में नहीं कर पाता; (२) कोई दूसरे के मन में प्रीति का प्रवेश कर देता है, किन्तु अपने मन में नहीं कर पाता; (३) कोई अपने मन में भी प्रीति का प्रवेश करता है और दूसरों के
फ मन में भी; तथा (४) कोई न अपने मन में प्रीति का प्रवेश कर पाता है और न दूसरों के मन में ।
३६०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अप्पणो णाममेगे पत्तियं पवेसेति णो परस्स, परस्स णाममेगे पत्तियं पवेसेति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि पत्तियं पवेसेति परस्सवि, एगे णो अप्पणो पत्तियं पवेसेति णो परस्स ।
चतुर्थ स्थान
(491)
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