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एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - रुतसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो रुतसंपणे, एगे रुतसंपण्णेवि रुवसंपण्णेवि, एगे णो रुतसंपणे णो रूवसंपण्णे ।
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३५६. पक्षी चार प्रकार के होते हैं- (१) कोई पक्षी रुत - ( स्वर - ) सम्पन्न (मधुर स्वर वाला) होता है, किन्तु रूप - सम्पन्न ( सुन्दर) नहीं होता, जैसे - कोयल; (२) कोई पक्षी रूप- सम्पन्न होता है, किन्तु स्वर - सम्पन्न नहीं होता, जैसे- तोता; (३) कोई पक्षी स्वर - सम्पन्न भी होता है और रूप- सम्पन्न भी, जैसे - मोर; एवं (४) कोई पक्षी न स्वर - सम्पन्न होता है और न रूप- सम्पन्न होता है, जैसे- काक (कौआ) ।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं - ( १ ) कोई मधुर स्वर-सम्पन्न प्रियभाषी होता है, किन्तु सुन्दर नहीं होता; (२) कोई दीखने में सुन्दर होता है, किन्तु मधुरभाषी नहीं होता; (३) कोई दीखने में मधुरभाषी और सुन्दर भी होता है; तथा (४) कोई न मधुरभाषी होता है और न ही सुन्दर ।
356. Pakshi (birds) are of four kinds-(1) Some bird is endowed with
rut (sweet voice) but not with rupa (good appearance; beauty), for
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example a cuckoo. (2) Some bird is endowed with sweet voice but not with beauty, for example a parrot. (3) Some bird is endowed with sweet voice as well as with beauty, for example a peacock. (4) Some bird is 卐 endowed neither with sweet voice nor with beauty, for example a crow. 卐 In the same way purush (men) are of four kinds-(1) Some man is endowed with sweet voice but not with beauty. (2) Some man is endowed
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with sweet voice but not with beauty. (3) Some man is endowed with
sweet voice as well as with beauty. (4) Some man is endowed neither
with sweet voice nor with beauty.
प्रीतिक- अप्रीतिक- पद PRITIK-APRITIK-PAD
(SEGMENT OF FRIENDSHIP AND ANIMOSITY)
३५७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, पत्तियं करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति ।
३५७. पुरुष चार प्रकार के होते हैं - ( १ ) कोई पुरुष किसी से प्रीति करने जाऊँ, ऐसा सोचता है और प्रीति करके आता है; (२) कोई किसी से प्रीति करने जाता है, किन्तु अप्रीति (द्वेष) करके आता
है; (३) कोई किसी से अप्रीति करने जाता है, किन्तु प्रीति करके आता है; और (४) कोई अप्रीति करने
जाता है और अप्रीति करके आता है।
357. Purush (men) are of four kinds-(1) Some man thinks of going to
make someone a friend and ends up making him a friend. (2) Some man
thinks of going to make someone a friend and ends up making him an
卐 enemy. (3) Some man thinks of going to make someone an enemy and
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5 स्थानांगसूत्र (१)
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(490)
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Sthaananga Sutra (1)
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