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जंबुद्दीवगआवस्सगं तु कालओ चूलिया जाव।
धायइसंडे पुक्खरवरे य पुवावरे पासे ॥१॥-संग्रहणी गाथा ३१९. इसी प्रकार धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी काल-पद (सूत्र ३०४) से लेकर यावत् मन्दरचूलिका (सूत्र ३१८) तक का सर्व कथन जानना चाहिए। इसी प्रकार (अर्ध) ॐ पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी कालपद से लेकर यावत् मन्दरचूलिका तक का सर्व कथन जानना चाहिए।
(संग्रहणी गाथा)-कालपद से लेकर मन्दरचूलिका तक जम्बूद्वीप में किया गया सभी वर्णन धातकीषण्डद्वीप के और अर्द्ध-पुष्करवरद्वीप के पूर्व-अपर पार्श्व भाग में भी कहा गया है।
319. In the same way the description of the eastern and western halves of Dhatakikhand Dveep should be read as that mentioned in aphorisms 304 (segment of time) to 318 (Mandar Chulika). In the same way the description of the eastern and western halves of Ardhapushkaravar Dveep should also be read as that mentioned in said aphorisms 304.
(Collative verse) All the description about Jambu Dveep mentioned from segment of time to Mandar chulika has also been repeated with 45 regard to the eastern and western halves of Dhatakikhand Dveep and
Ardhapushkaravar Dveep. द्वार-पद DVAR-PAD (SEGMENT OF GATEWAY)
३२०. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा-विजये, विजयंते, जयंते, । अपराजिते। ते णं दारा चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं पण्णत्ता।
तत्थ णं चत्तारि देवा महिडिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा-विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते।
३२०. जम्बूद्वीप द्वीप के चार द्वार हैं-(१) विजयद्वार, (२) वैजयन्तद्वार, (३) जयन्तद्वार, + (४) अपराजितद्वार।
इन द्वारों की चौड़ाई चार योजन की और प्रवेश (मुख) भी चार योजन का है। ____ उन द्वारों पर पल्योपम की स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं-(१) विजयदेव, + (२) वैजयन्तदेव, (३) जयन्तदेव, (४) अपराजितदेव।
320. There are four dvars (gateways) of Jambu Dveep (1) Vijaya dvar, (2) Vaijayant dvar, (3) Jayant dvar, and (4) Aparajit dvar. The width of these gateways is four Yojans (a unit of eight miles) and entrance (height) is also four Yojans.
स्थानांगसूत्र (१)
(466)
Sthaananga Sutra (1)
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