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855555555555555555555555555555555555 45 (physically strong) one. (4) Some krish sharira man does not attain
special Jnana-darshan and a dridha sharira one too.
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अतिशेष-ज्ञान-दर्शन-बाधक-साधक-पद ATISHESH-JNANA-DARSHAN-BADHAK-SADHAK- PAD
(SEGMENT OF ATTAINING AND NOT ATTAINING ... .
MIRACULOUS KNOWLEDGE AND PERCEPTION FAITH) २५४. चउहिं ठाणेहिं णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अस्सिं समयंसि अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पजिउकामेवि ण समुप्पज्जेज्जा, तं जहा
(१) अभिक्खणं-अभिक्खणं इथिकहं भत्तकहं देसकहं कहेत्ता भवति। (२) विवेगेण के विउस्सग्गेणं णो सम्ममप्पाणं भाविता भवति। (३) पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि णो धम्मजागरियं जागरइत्ता भवति। (४) फासुयस्स एसणिज्जस्स उंछस्स सामुदाणियस्स णो सम्मं गवेसित्ता भवति।
इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा जाव [ णो समुप्पज्जेज्जा।
२५४. चार कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के इस समय अर्थात् चतुर्थ आरे में भी तत्काल अतिशययुक्त ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होते-होते भी उत्पन्न नहीं होत
(१) जो बार-बार स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा और राजकथा करता है। (२) जो विवेक और 卐 व्युन्पर्ग के द्वारा आत्मा को सम्यक् प्रकार के भावित नहीं करता। (३) जो पूर्वरात्रि और अपररात्रिकाल
के समय धर्म-जागरणा करके जागृत नहीं रहता। (४) जो प्रासुक, एषणीय, उञ्छ और सामुदानिक ॐ भिक्षा की सम्यक् प्रकार से गवेषणा नहीं करता।
254. For four reasons nirgranth and nirgranthi (male and female ascetics) about to attain miraculous jnana and darshan (knowledge and perception/faith) fail to do that
(1) He who repeatedly indulges in gossips about women, food, country and king. (2) He who does not properly enkindle his soul with sagacity and renunciation. (3) He who does not remain awake for religious activities during first and last quarters of night. (4) He who does not explore for prescribed, acceptable, to be collected in small portions and
begged alms. 卐 विवेचन-विशिष्ट पदों का अर्थ इस प्रकार है-विवेक-अशुद्ध भावों को त्यागकर शरीर और आत्मा
की भिन्नता का विचार करना। व्युत्सर्ग-शरीर पर से ममत्व हटाकर कायोत्सर्ग करना। प्रासुक-अचित्त + या निर्जीव वस्तु प्रासुक कहलाती है। एषणीय-उद्गम आदि दोषों से रहित साधुओं के लिए कल्प्य
आहार। उच्छ-अनेक घरों से थोड़ा-थोड़ा लिया जाने वाला भक्त-पान। सामुदानिक-याचनावृत्ति से भिक्षा प्राप्त करना। अतिशय ज्ञान-दर्शन-उत्कृष्ट जातिस्मरण, परमावधि, मनःपर्यव ज्ञान और केवल 卐 ज्ञान-दर्शन।
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स्थानांगसूत्र (१)
(430)
Sthaananga Sutra (1)
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