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२०८-२१०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-(१५) दीणे णाममेगे दीणसेवी (२०८)। एवं (१६) दीणे णाममेगे दीणपरियाए (२०९)। (१७) दीणे णाममेगे दीणपरियाले, ॐ सबत्थ चउभंगो (२१०)।
२०४-२०७. चार प्रकार के पुरुष होते हैं-(११) कोई दीन होकर दीन वृत्ति (दीन आजीविका वाला) (२०४)। इसी तरह (१२) दीन जाति (२०५), (१३) दीन भाषी (दीन वचन बोलने वाला) (२०६), (१४) दीन अवभासी (दीन दीखने वाला) समझना चाहिए (२०७)।
२०८-२१०. चार प्रकार के पुरुष होते हैं-(१५) दीन होकर दीन की सेवा करने वाला (२०८), (१६) दीन होकर दीन अवस्था में रहने वाला (२०९), (१७) दीन होकर दीन परिवार वाला (२१०)। इन सभी १७ पदों के प्रत्येक के चार-चार भंग होते हैं।
204-207. Men are of four kinds_(xi) some man is poor and deen vritti (poor in livelihood) (204), (xii) deen jati (poor of caste) (205), (xiii) deen bhashi (poor in speech) (206), and (xiv) deen avabhasi (poor in appearance) (207).
208-210. Men are of four kinds-(xv) some man is poor and deen sevi (poor in serving the poor) (208), (xvi) deen paryaya (poor and living in poor condition) (209), and (xvii) deen parivar (poor and having a poor family) (210). Consider four afore said alternatives in each of the said 17 cases.
विवेचन-दीन का अर्थ है-दया पात्र, दरिद्र, दुर्बल आदि। तथा अदीन का अर्थ है-समर्थ, सक्षम, उद्यमी व उत्साही। दीन व अदीन के यहाँ पर सत्रह पदों का कथन है और प्रत्येक के चार-चार भंग
होने का संकेत किया गया है। प्रथम दो पदों का विस्तार मूल पाठ में है। आगे तृतीय पद से सत्रह तक 卐 के चार-चार भंग इस प्रकार समझने चाहिए
(३) दीन होकर दीन रूप-(१) कोई पुरुष दीन है और दीनरूप वाला (दीनतासूचक मलिन वस्त्र आदि वाला) है। (२) कोई दीन है, किन्तु दीनरूप वाला नहीं। (३) कोई दीन न होकर के भी दीनरूप वाला है। (४) कोई न दीन है और न दीनरूप वाला है।
(४) दीन और दीन मन-(१) कोई पुरुष दीन है और दीन मन वाला भी है। (२) कोई दीन होकर भी 卐 दीन मन वाला नहीं है। (३) कोई दीन नहीं होकर के भी दीन मन वाला है। (४) कोई न दीन है और न दीन मन वाला है।
(५) दीन और दीन संकल्प-(१) कोई पुरुष दीन है और दीन संकल्प वाला भी है। (२) कोई दीन होकर भी दीन संकल्प वाला नहीं है। (३) कोई दीन नहीं होकर के भी दीन संकल्प वाला है। (४) कोई ॐ न दीन है और न दीन संकल्प वाला है।
(६) दीन और दीन प्रज्ञ-(१) कोई पुरुष दीन है और दीन प्रज्ञा (मंद बुद्धि) वाला है। (२) कोई दीन होकर के भी दीन प्रज्ञा वाला नहीं है। (३) कोई दीन नहीं होकर के भी दीन प्रज्ञा वाला है। (४) कोई न ॐ दीन है और न दीन प्रज्ञा वाला है।
| स्थानांगसूत्र (१)
(402)
Sthaananga Sutra (1)
ख)
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