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१९२. वत्तारि पडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहा-मणपडिसंलीणे, वइपडिसंलीणे, , कायपडिसंलीणे, इंदियपडिसंलीणे। १९३. चत्तारि अपडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहामणअपडिसंलीणे, जाव इंदियअपडिसंलीणे। .
१९२. प्रतिसंलीन चार प्रकार के होते हैं-(१) मनः-प्रतिसंलीन, (२) वाक्-प्रतिसंलीन, (३) काय-प्रतिसंलीन, (४) इन्द्रिय-प्रतिसंलीन। १९३. अप्रतिसंलीन चार प्रकार के होते हैं-(१) मनअप्रतिसलीन, यावत् [(२) वाक्-अप्रतिसंलीन, (३) काय-अप्रतिसंलीन], (४) इन्द्रिय-अप्रतिसंलीन।
192. Pratisamlin are of four kinds-(1) manah-pratisamlin, (2) vaakpratisamlin, (3) kaya-pratisamlin, and (4) indriya-pratisamlin. 193. Apratisamlin are of four kinds-(1) manah-apratisamlin, ...and so on up to... [(2) vaak-apratisamlin, (3) kaya-apratisamlin, and] (4) _indriya-apratisamlin.
विवेचन-मन, वचन, काय की अशुभ प्रवृत्ति में संलग्न नहीं होकर उसका निरोध करना मन, वचन, काय की प्रतिसंलीनता है। इन्द्रियों के विषयों में संलग्न नहीं होना इन्द्रिय-प्रतिसंलीनता है। इसके विपरीत अप्रतिसंलीनता है।
Elaboration—To discipline the wrong inclinations of mind, speech and body instead of associating with them is pratisamlinata (counter- fi engrossment) of mind, speech and body. Not to get involved with the sensual pleasures is pratisamlinata (counter-engrossment) of sense F organs. Opposite of this is apratisamlinata. दीन-अदीन-पद DEEN-ADEEN-PAD (SEGMENT OF POORAND NON-POOR)
१९४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-(१) दीणे णाममेगे दीणे, दीणे णाममेगे अदीणे, * अदीणे णाममेगे दीणे, अदीणे णाममेगे अदीणे। १९५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा
(२) दीणे णाममेगे दीणपरिणते, दीणे णाममेगे अदीणपरिणते, अदीणे णाममेगे दीणपरिणते, ॐ अदीणे णाममेगे अदीणपरिणते।
१९४. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई बाहर से दीन (दरिद्र) और मन से भी दीन होता है, म (२) कोई बाहर से दीन, किन्तु मन से अदीन, (३) कोई बाहर से अदीन, किन्तु मन से दीन, और ॥
(४) कोई न बाहर से दीन और न मन से दीन होता है। १९५. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई ॥ ॐ दीन है और दीन रूप में परिणत होता है (दीनता दिखाता है)। (२) कोई दीन होकर के भी दीनरूप से - के परिणत नहीं होता। (३) कोई दीन नहीं होकर के भी दीनरूप में दिखाई देता है। (४) कोई न दीन है ॥ - और न दीनरूप से परिणत होता है।
194. Men are of four kinds-(i) (1) Some man is deen (poor) externally deen (poor) internally as well. (2) Some man is deen (poor) externally and
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स्थानांगसूत्र (१)
(400)
Sthaananga Sutra (1)
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