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controlled)—not properly dressed but with control over sense organs, and (4) agupta and aguptindriya (neither concealed nor controlled)-neither properly dressed nor with control over sense organs. अवगाहना-पद AVAGAHANA-PAD (SEGMENT OF OCCUPATION)
१८८. चउविहा ओगाहणा पण्णत्ता, तं जहा-दव्योगाहणा, खेत्तोगाहणा, कालोगाहणा, भावोगाहणा।
१८८. अवगाहना चार प्रकार की होती है, जैसे-(१) द्रव्यावगाहना, (२) क्षेत्रावगाहना, (३) कालावगाहना, (४) भावावगाहना। _____188. Avagahana (occupation) is of four kinds—(1) dravyavagahana, (2) kshetravagahana, (3) kaalavagahana, and (4) bhaavavagahana.
विवेचन-जिसमें जीवादि द्रव्य स्थित होते हों, उसे अवगाहना कहते हैं। जिस द्रव्य का जो शरीर या आकार है वही उसकी द्रव्यावगाहना है। इसी प्रकार आकाशरूप क्षेत्र क्षेत्रावगाहना। मनष्यक्षेत्ररूप समय की अवगाहना, कालावगाहना है, यह मनुष्यक्षेत्र में है और भाव (पर्यायों) वाले द्रव्यों की अवगाहना, भावावगाहना है।
Elaboration—That which is occupied by entities like jiva (soul or living being) is called avagahana. The form or shape of a thing is dravyavagahana. The area occupied in space by a thing is kshetravagahana. The time occupied in area of human habitation is kaalavagahana. The state occupied by modal things in terms of modes is bhaavavagahana. प्रज्ञप्ति-पद PRAJNAPTI-PAD (SEGMENT OF ELABORATION)
१८९. चत्तारि पण्णत्तीओ अंगबाहिरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, जंबुद्दीवपण्णत्ती, दीवसागरपण्णत्ती।
१८९. चार प्रज्ञप्तियाँ अंगबाह्य हैं-(१) चन्द्रप्रज्ञप्ति, (२) सूर्यप्रज्ञप्ति, (३) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, (४) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति।
॥प्रथम उद्देशक समाप्त ॥ ___189. Four prajnaptis (explanatory texts) are Angabahya (outside the Anga texts)–(1) Chandra Prajnapti, (2) Surya Prajnapti, (3) Jambudveep Prajnapti, and (4) Dveep-sagar Prajnapti.
• END OF THE FIRST LESSON
स्थानांगसूत्र (१)
(398)
Sthaananga Sutra (1)
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