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imitating someone's style of speech, (3) by hearing-by hearing funny 7 statements including jokes, and (4) by recalling-by recalling funny
things seen or heard in the past. अंतर-पद ANTAR-PAD (SEGMENT OF DIFFERENCE)
१४६. चउबिहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा-कटुंतरे, पम्हंतरे, लोहंतरे, पत्थरंतरे।
एवामेव इत्थीए वा पुरिसस्स वा चउबिहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा-कद्वंतरसमाणे, पहंतरसमाणे, लोहंतरसमाणे, पत्थरंतरसमाणे।
१४६. अन्तर (भिन्नता) चार प्रकार के होते हैं-(१) काष्टान्तर-एक काष्ठ से दूसरे काष्ठ का अन्तर, जैसे-चन्दन और बबूल में अन्तर है, (२) पक्ष्मान्तर-धागे से धागे का अन्तर, विशिष्ट कोमलता आदि की अपेक्षा से, (३) लोहान्तर-छेदन-शक्ति की उपयोगिता से, (४) प्रस्तरान्तर-सामान्य पाषण से हीरा-पन्ना आदि की अपेक्षा से।
इसी प्रकार स्त्री से स्त्री का और पुरुष से पुरुष का अन्तर भी चार प्रकार का होता है(१) काष्टान्तर के समान-विशिष्ट पद आदि की अपेक्षा से, (२) पक्ष्मान्तर के समान-वचन-मृदुता आदि की अपेक्षा से, (३) लोहान्तर के समान-स्नेह का छेदन करने आदि की अपेक्षा से, (४) प्रस्तरान्तर के समान-विशिष्ट मनोरथ पूर्ण करने की क्षमता व गुणों आदि की अपेक्षा से। ____146. Antar (qualitative difference) is of four kinds-(1) Kaashthantar (wood-like difference)-difference between two kinds of wood, such as chandan (sandalwood) and babool (acacia wood). (2) Pakshmantar (fibre-like difference)-difference between texture of two kinds of fibres. (3) Lohantar (iron-like difference)-difference in hardness and use of two kinds of iron or metal. (4) Prastarantar (stone-like difference)difference in qualities, and worth of two kinds of stones, such as gem stone and ordinary stone.
In the same way the qualitative difference between one woman and another as well as one man and another is of four kinds—(1) like kaashthantar-in context of special status and other such qualities, (2) like pakshmantar-in context of sweetness of speech and other such qualities, (3) like lohantar-in context of terminating amicable relations and other such qualities, and (4) like Prastarantar-in context of ability to accomplish lofty desires and other such qualities. भृतक-पद BHRITAK-PAD (SEGMENT OF SERVANT)
१४७. चत्तारि भयगा पण्णत्ता, तं जहा-दिवसभयए, जत्ताभयए, उच्चत्तभयए, कब्बालभयए।
चतुर्थ स्थान
(389)
Fourth Sthaan
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