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कर्माश- पद KARMANSH-PAD (SEGMENT OF FRACTION OF KARMAS) १४२. पढमसमयजिणस्स णं चत्तारि कम्मंसा खीणा भवंति, तं जहा - णाणावरणिज्जं, फ दंसणावरणिज्जं, मोहणिज्जं, अंतराइयं । १४३. उप्पण्णणाणदंसणधरे णं अरहा जिणे केवली चत्तारि कम्मंसे वेदेति, तं जहा - वेदणिज्जं, आउयं, णामं, गोतं । १४४. पढमसमयसिद्धस्स णं चत्तारि कम्मंसा जुगवं खिज्जंति, तं जहा-वेयणिज्जं, आउयं, णामं, गोतं ।
१४२. प्रथम समयवर्ती केवली जिन के चार कर्म क्षीण हो चुके होते हैं - (१) ज्ञानावरणीय, 5 (२) दर्शनावरणीय, (३) मोहनीय, और (४) अन्तराय कर्म । १४३. केवलज्ञान-दर्शन के धारक केवली जिन अर्हन्त चार सत्कर्मों का वेदन करते हैं - (१) वेदनीय कर्म, (२) आयुष्य कर्म, (३) नाम कर्म, और (४) गोत्र कर्म । १४४. प्रथम समयवर्ती सिद्धों के चार कर्म एक साथ क्षीण होते हैं - (१) वेदनीय कर्म, (२) आयुष्य कर्म, (३) नाम कर्म, और (४) गोत्र कर्म ।
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142. Four karmas of a Pratham Samayavarti Kevali Jina (omniscient 5 Jina in the first moment of omniscience) are already extinct (in other words omniscience is attained the moment these four karmas फ्र extinct)–(1) Jnanavaraniya ( knowledge obscuring karma), 5 (2) Darshanavaraniya ( perception obscuring karma ), ( 3 ) Mohaniya 5 (deluding karma), and ( 4 ) Antaraya (power hindering karma). 143.5 Kevali Jina Arhant (omniscient Jina) possessing Keval-Jnana and 卐 Darshan experiences four kinds of noble karmas-(1) Vedaniya karma (karma responsible for experience of pain and pleasure), (2) Ayushya karma (life span determining karma), (3) Naam Karma (karma that determines the destinies and body types), and (4) Gotra karma (status 5 determining karma). 144. Four karmas of a Pratham Samayavarti 卐 Siddha (perfected and liberated soul in the first moment of liberation) 5 get destroyed at once (in other words liberation is attained the moment 卐
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these four karmas get destroyed ) – ( 1 ) Vedaniya karma, (2) Ayushya 5 karma, (3) Naam Karma, and (4) Gotra karma.
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हास्योत्पत्ति - पद HASYOTPATTI PAD (SEGMENT OF ORIGIN OF LAUGHTER)
१४५. चउहिं ठाणेहिं हासुप्पत्ती सिया, तं जहा - पासेत्ता, भासेत्ता, सुणेत्ता, संभरेत्ता ।
१४५. चार कारणों से हास्य की उत्पत्ति होती है - (१) देखकर - विदूषक आदि की चेष्टाओं को (२) बोलकर - किसी के बोलने की नकल करने से, (३) सुनकर - हास्योत्पादक वचन सुनकर 5
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145. There are four reasons for the origin of laughter — (1) by seeing - by seeing gestures of someone, such as a jester, (2) by speaking-by
देखकर,
(४) स्मरण कर - हास्यजनक देखी या सुनी बातों का स्मरण ।
स्थानांगसूत्र (१)
फ्र
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Sthaananga Sutra (1)
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