________________
सव्वतोभद्दा। ९८. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खुड्डिया मोयपडिमा, महल्लिया ! * मोयपडिमा, जवमज्झा, वइरमज्झा।
९६. प्रतिमा चार प्रकार की हैं-(१) समाधिप्रतिमा, (२) उपधानप्रतिमा, (३) विवेकप्रतिमा, (४) व्युत्सर्गप्रतिमा। ९७. प्रतिमा चार प्रकार की हैं-(१) भद्रा, (२) सुभद्रा, (३) महाभद्रा, 卐 (४) सर्वतोभद्रा। ९८. प्रतिमा चार प्रकार की हैं-(१) छोटी मोकप्रतिमा, (२) बड़ी मोकप्रतिमा, (३) यवमध्या, (४) वज्रमध्या।
इन सभी प्रतिमाओं का विवेचन दूसरे स्थान के तृतीय उद्देशक, सूत्र २४८ में किया जा चुका है। ____96. Pratima (special codes) are of four kinds (1) samadhi-pratima, 4 (2) upadhan-pratima, (3) vivek-pratima, and (4) vyutsarg-pratima.
97. Pratima (special codes) are of four kinds-(1) bhadraa, (2) subhadraa, (3) mahabhadraa, and (4) sarvatobhadraa. 98. Pratima (special codes) are of four kinds—(1) kshudrak moak-pratima, (2) mahati moak-pratima, (3) yavamadhyaa, and (4) vajramadhyaa. These special codes have already been discussed in details in aphorism 248 of Third Lesson of Second Sthaan. अस्तिकाय-पद ASTIRAYA-PAD (SEGMENT OF AGGLOMERATIVE ENTITY)
९९. चत्तारि अस्थिकाया अजीवकाया पण्णता, तं जहा-धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए। १००. चत्तारि अस्थिकाया अरूविकाया पण्णत्ता, तं जहाधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासस्थिकाए, जीवत्थिकाए।
९९. चार अस्तिकाय द्रव्य अजीवकाय होते हैं-(१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, म (३) आकाशास्तिकाय, (४) पुद्गलास्तिकाय। १००. चार अस्तिकाय द्रव्य अरूपीकाय होते हैं(१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, (४) जीवास्तिकाय।
99. Four astikaya dravyas (agglomerative entities) are ajivakaya (lifeless) (1) Dharmastikaya (motion entity), (2) Adharmastikaya (inertia entity), (3) Akashastikaya (space entity), and (4) Pudgalastikaya (matter entity). 100. Four astikaya dravyas (agglomerative entities) are arupikaya (form-less)--(1) Dharmastikaya (motion entity), (2) Adharmastikaya (inertia entity), (3) Akashastikaya (space entity), and (4) Jivastikaya (soul entity).
विवेचन-ये चारों द्रव्य तीनों कालों में विद्यमान रहने से 'अस्ति' कहलाते हैं और बहुप्रदेशी होने से 'काय' कहे जाते हैं। अस्तिकाय अर्थात् प्रदेशों का समूह रूप द्रव्य। जिनमें रूप, रसादि पाये जाते हैं, ऐसे 卐 पुद्गल द्रव्यरूपी होते हैं। धर्मास्तिकाय आदि चारों द्रव्यों में रूपादि नहीं होने से ये अरूपी काय हैं।
स्थानांगसूत्र (१)
(368)
Sthaananga Sutra (1)
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org