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ததததததததததததததததததததததததததததததததததததத करेंगे। ( ४ ) आठों कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा की है, कर रहे हैं और करेंगे। (५) आठों कर्म-प्रकृतियों 5 को भोगा है, भोग रहे हैं और भोगेंगे, तथा (६) आठों कर्म - प्रकृतियों की निर्जरा की है, कर रहे हैं और करेंगे। वैमानिक तक सभी जीवों में एक-एक पद में निर्जरा तक तीन-तीन दण्डक जानना चाहिए।
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95. In the same way all beings belonging to all dandaks (places of 5 suffering) from infernal beings to Vaimanik gods did, do and will augment
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(upachaya ) ( 2 ) all the eight karma-prakritis; did, do and will enter சு bondage (bandh) (3) of all the eight karma-prakritis; did do and will फ्र undergo fructification (udirana) (4) of all the eight karma-prakritis; did, 5 do and will experience (bhog ) (5) all the eight karma-prakritis; and did, do and will shed (nirjaran) (6) all the eight karma-prakritis. With respect to all beings up to Vaimanik gods in every statement three dandaks (with respect to time, i.e. past, present and future) are applicable.
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विवेचन-विशेष पदों का अर्थ - (१) चय - कषाययुक्त जीव द्वारा कर्मों का ग्रहण । (२) उपचय-ग्रहीत कर्म - पुद्गलों का ज्ञानावरण आदि रूपों में परिणत होना । (३) बंध - ज्ञानावरणादि रूप में ग्रहीत पुद्गलों का पुनः कषाय विशेष से निकाचन होना, यह प्रकृति, स्थिति, अनुभाग व प्रदेश के रूप में चार प्रकार का है । ( ४ ) उदय - कर्म - प्रकृति का स्वतः फल परिपाक रूप भोग में आना । (५) वेदन - कर्मफल भोग की अनुभूति को वेदन कहते हैं । (६) निर्जरा - आत्म- प्रदेशों से कर्मों का पृथक् होना । (७) उदीरणा- जो कर्म अभी उदय में नहीं आये, परन्तु साधना विशेष द्वारा उन्हें उदय में लाना। सूत्र ९३ से ९५ तक में प्रथम छह विकल्पों का ही कथन है।
TECHNICAL TERMS
(1) Chaya (sanchaya)-acquisition of karmas by a being afflicted by passions. (2) Upachaya-augmentation and maturing into species like Jnanavaran etc. (3) Bandh-maturing of the acquired karma particles into passion-specific bondage with four attributes of prakriti (qualitative), sthiti (duration), anubhag ( potency) and pradesh (spacepoint or sectional). (4) Udaya-natural fructification of karma species in ; the form of suffering (5) Vedan (bhog ) — experience of the fruits of 5 karmas. (6) Nirjara-shedding of karmas or separation of karmas from 5 soul-space-points. (7) Udirana-to cause fructification, by special spiritual practices, of karma species that have not yet fructified naturally. In aphorisms 93-95 only first six processes have been stated. प्रतिमा- पद PRATIMA-PAD (SEGMENT OF SPECIAL CODES )
९६. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - समाहिपडिमा उवहाणपडिमा विवेगपडिमा, विउस्सग्गपडिमा । ९७. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - भद्दा, सुभद्दा, महाभद्दा,
| चतुर्थ स्थान
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