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८४. चउव्विहे कोहे पण्णत्ते, तं जहा - अणंताणुबंधी कोहे, अपच्चक्खाणकसाए कोहे, पच्चक्खाणावरणे कोहे, संजलणे कोहे । एवं- णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । ८५-८७. एवं जाव लोहे । जाव वेमाणियाणं ।
८४. क्रोध चार प्रकार का होता है - ( १ ) अनन्तानुबन्धी क्रोध - संसार की अनन्त परम्परा को बढ़ाने 5 5 वाला । (२) अप्रत्याख्यानकषाय क्रोध - देशविरति ( श्रावक व्रत) का अवरोधक । ( ३ ) प्रत्याख्यानावरण फ्र 5 क्रोध - सर्वविरति ( चारित्र ) का अवरोधक । (४) संज्वलन क्रोध - यथाख्यात चारित्र का अवरोधक । यह फ्र चारों प्रकार का क्रोध नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में पाया जाता है। ८५. क्रोध की 5 तरह मान, ८६. माया और ८७. लोभ कषाय भी चार प्रकार का होता है। यह चारों नैरयिकों से लेकर 15 वैमानिक देवों तक सभी दण्डकों के जीवों में पाया जाता है।
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84. Krodh (anger) is of four kinds-(1) anantanubandhi krodh-that which enhances the unending cycles of rebirth, (2) apratyakhyan 卐 kashaya krodh-that which inpedes observation of desh-virati (partial 卐 renunciation or househoider's vows ), ( 3 ) pratyakhyanavaran krodh—that which impedes observation of sarva-virati (complete renunciation or 5 ascetic's vows ), and (4) sanjvalan krodh - that which impedes yathakhyat 5 charitra (conduct conforming to perfect purity). These four kinds of
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anger are applicable to all dandaks (places of suffering) from infernal beings to Vaimanik gods. Like anger 85. maan, 86. maya, and 87. lobh are also of the aforesaid four kinds. These four passions are applicable to
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all dandaks (places of suffering) from infernal beings to Vaimanik gods. ८८. चउबिहे कोहे पण्णत्ते, तं जहा - आभोगणिव्यत्तिते, अणाभोगणिव्यत्तिते, उवसंते, अणुवसंते । एवं - णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ।
८९-९१. एवं जाव लोहे । जाव वेमाणियाणं ।
८८. क्रोध चार प्रकार का होता है - (१) आभोगनिर्वर्तित, (२) अनाभोगनिर्वर्तित, (३) उपशान्त
5 क्रोध, (४) अनुपशान्त क्रोध । यह चारों प्रकार का क्रोध नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों फ में पाया है।
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The kinds of other passions, 89. maan (conceit ), 90. maya (deceit ), and 91. lobh (greed), should also be read like those of krodh (anger ).
स्थानांगसूत्र (१)
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८९. क्रोध की तरह मान, ९०. माया, और ९१. लोभ कषाय के भेद और भी अर्थ समझना चाहिए। 5 88. Krodh (anger) is of four kinds-(1) aabhoganirvartit krodh, (2) anabhoganirvartit krodh, (3) upashant krodh, and (4) anupashant krodh. These four kinds of anger are applicable to all dandaks (places of suffering) from infernal beings to Vaimanik gods.
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Sthaananga Sutra (1)
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