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3555555555555555555555555))))) ॐ विवेचन-(१) आभोगनिर्वर्तित-क्रोध के दुष्फल या कटु परिणाम को जानते हुए भी क्रोध करना। म (अभयदेवसूरि स्थानांग टीका, पत्र १८२)। दूसरे के अपराध को भलीभाँति जान लेने पर भी उसको में सुधारने के लिए या सीख देने के लिए कृत्रिम रोष प्रकट करना। (मलयगिरि प्रज्ञापना वृत्ति, पद १४ पत्र २९१)
(२) अनाभोग निर्वर्तित-(१) क्रोध के कटु फल को नहीं जानकर अज्ञान दशा में क्रोध करना। (अभयदेव.), (२) प्रयोजन के बिना ही अपनी आदतों के वश क्रोध करना। (मलयगिरि.)
(३) उपशान्त क्रोध-उदय में नहीं आया, किन्तु सत्ता में अवस्थित क्रोध। (४) अनुपशान्त क्रोध-उदय प्राप्त क्रोध। (इसी प्रकार मान, माया और लोभ कषाय की भी व्याख्या समझनी चाहिए। देखें हिन्दी टीका, पृष्ठ ६९९)
अनन्तानुबन्धी-क्रोध, मान, माया, लोभ की तालिका अवरोध
आयुबन्ध होवे तो उत्कृष्ट स्थिति (१) अनन्तानुबन्धी सम्यक्त्व
नरकगति जीवन-पर्यन्त (२) अप्रत्याख्यानावरण श्रावक धर्म तिर्यंचगति
एक वर्ष (३) प्रत्याख्यानावरण साधु धर्म मनुष्यगति
चार मास (४) संज्वलन यथाख्यात चारित्र देवगति
पन्द्रह दिन
-1-1-1-1-नानानागारागागागाभाजप)
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कषाय
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Elaboration—(1) Aabhoganirvartit krodh--to be angry in spite of knowing about the bad consequences and bitter fruits of anger
(Sthananga Sutra Tika by Abhayadev Suri, leaf 182). To pose to be angry in i order to correct or teach someone after fully understanding his mistake (Prajnapana Vritti by Malayagiri, verse 14, leaf 291).
(2) Anabhoganirvartit krodh-To be angry in a state of ignorance of the bitter consequences of anger (Abhayadev Suri). To be angry just out of habit and not for any purpose (Malayagiri). ___(8) Upashant krodh-Dormant anger that exists but has not come into action.
(4) Anupashant krodh-Anger that has come into action and is dormant no more. .
(All these elaborations also apply to conceit, deceit and greed. Refer to Hindi Tika, p.699)
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चतुर्थ स्थान
(365)
Fourth Sthaan
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