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(4) Samuchchhinnakriya-apratipati—When even the subtle activity (breathing) also ceases it is called Samuchchhinnakriya. Once this level is reached there is no scope of a fall (apratipati).
TABLE OF SHUKLADHYANA S. No. level
duration
on death tenth Gunasthan
antarmuhurt
reincarnation in
Anuttar Vimaan twelfth Gunasthan
transition to Keval jnana no death just before transition from state of kaivalya
no death 13th to 14th Gunasthan dissociated state of
liberation 14th Gunasthan
७०. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा-अब्बहे, असम्मोहे, विवेगे, विउस्सग्गे।
७१. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे।
७२. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-अणंतवित्तयाणुप्पेहा, विप्परिणामाणुप्पेहा, असुभाणुप्पेहा, अवायाणुप्पेहा।
७०. शुक्लध्यान के चार लक्षण हैं-(१) अव्यथ-व्यथा से परिषह या उपसर्गादि से पीड़ित होने पर पक्षोभित नहीं होना। (२) असम्मोह-देवादिकृत माया से मोहित नहीं होना। (३) विवेक-सभी संयोगों को ॐ आत्मा से भिन्न मानना। (४) व्युत्सर्ग-शरीर और उपधि से ममत्व का त्याग कर पूर्ण निःसंग होना।
७१. शुक्लध्यान के चार आलम्बन हैं-(१) क्षान्ति (क्षमा), (२) मुक्ति (निर्लोभता), (३) आर्जव 卐 (सरलता), और (४) मार्दव (मृदुता)।
७२. शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ हैं-(१) अनन्तवृत्तितानुप्रेक्षा-संसार में परिभ्रमण की अनन्तता 卐 का विचार करना। (२) विपरिणामानुप्रेक्षा-वस्तुओं के विविध परिणमनों का विचार करना।
(३) अशुभानुप्रेक्षा-संसार, देह और भोगों की अशुभता का विचार करना। (४) अपायानुप्रेक्षा-राग-द्वेष से होने वाले दोषों का विचार करना। (विस्तार के लिए हिन्दी टीका, पृ. ६८० से ६९० देखें)
70. There are four signs of shukladhyana—(1) Avyatha—not to get disturbed by any affliction or distress. (2) Asammoha-not to be deluded by any illusions created by gods. (3) Vivek-the realization that soul and other things including body are separate entities. (4) Vyutsarg-to
renounce body and ascetic-equipment with total detachment. si 71. There are four supports of shukladhyana-(1) Kshanti卐 endurance and forgiveness. (2) Mukti-freedom from greed and
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स्थानांगसूत्र (१)
(360)
Sthaananga Sutra (1)
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