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________________ B555555555555555555555555555558 ६९. सुक्के झाणे चउबिहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते, तं जहा-पुहुत्तवितक्के सवियारी, म एगत्तवितक्के अवियारी, सुहुमकिरिए अणियट्टी, समुच्छिण्णकिरिए अप्पडिवाती। ॐ ६९. शुक्लध्यान चार प्रकार का है। वह (स्वरूप, लक्षण, आलम्बन और अनुप्रेक्षा) इन चार पदों में 9 अवतरित है, जैसेम (१) पृथक्त्ववितर्क सविचारी, (२) एकत्ववितर्क अविचारी, (३) सूक्ष्मक्रिय-अनिवृत्ति, और (४) समुच्छिन्नक्रिय-अप्रतिपाति। 41 69. Shukladhyana is of four kinds. It is summed up in four steps (svarupa or form, lakshan or signs, alamban or support, and anupreksha or contemplation)(1) Prithaktvavitark-savichari, (2) Ekatvavitarkavichari, (3) Sukshmakriya-anivritti, and (4) Samuchchhinnakriya apratipati. - विवेचन-परम विशुद्ध अति उज्ज्वल सर्वश्रेष्ठ भावधारा का नाम शुक्लध्यान है। वीतरागदशा में ही शुक्लध्यान सम्भव है। जब जीव की मोहनीय कर्म की प्रकृतियाँ सर्वथा प्रशान्त या क्षीण हो जाती हैं तब ॐ शुक्लध्यान होता है। शुक्लध्यान के चार चरण हैं। उनमें प्रथम दो चरणों-पृथक्त्ववितर्क-सविचार और ॐ एकत्ववितर्क-अविचार-के अधिकारी श्रुतकेवली (चतुर्दशपूर्वी) होते हैं। इस ध्यान में सूक्ष्म द्रव्यों और भी पर्यायों का आलम्बन लिया जाता है, इसलिए सामान्य श्रुतधर इसे प्राप्त नहीं कर सकते। ॐ (१) पृथक्त्ववितर्क-सविचारी-जब एक द्रव्य के अनेक पर्यायों का अनेक दृष्टियों व नयों से पृथक्-पृथक् चिन्तन किया जाता है और पूर्व-श्रुत का आलम्बन लिया जाता है तथा शब्द से अर्थ में ॐ और अर्थ से शब्द में एवं मन, वचन और काय योगों में से एक-दूसरे में संक्रमण किया जाता है, शुक्लध्यान की उस स्थिति को पृथक्त्ववितर्क-सविचारी कहा जाता है। ज (२) एकत्ववितर्क-अविचारी-जब एक द्रव्य के किसी एक पर्याय का अभेद दृष्टि से चिन्तन किया जाता है और पूर्व-श्रुत का आलम्बन लिया जाता है तथा जहाँ शब्द, अर्थ एवं मन, वचन, काय योगों 9 में से एक-दूसरे में संक्रमण नहीं किया जाता है, शुक्लध्यान की उस स्थिति को एकत्ववितर्क-अविचारी कहा जाता है। म (३) सूक्ष्मक्रिय-अनिवृत्ति-जब मन और वाणी के योग का पूर्ण निरोध हो जाता है और काया के योग का पूर्ण निरोध नहीं होता-श्वासोच्छ्वास जैसी सूक्ष्म क्रिया शेष रहती है, उस अवस्था को ॐ सूक्ष्मक्रिय कहा जाता है। इसका निवर्तन-हास नहीं होता, इसलिए यह अनिवृत्ति है। ॐ (४) समुच्छिन्नक्रिय-अप्रतिपाति-जप सूक्ष्म क्रिया का भी निरोध हो जाता है, उस अवस्था को समुच्छिन्नक्रिय कहा जाता है। इसका पतन नहीं होता, इसलिए यह अप्रतिपाति है। स्थानांगसूत्र (१) (358) Sthaananga Sutra (1) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
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