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६८. धर्म्यध्यान की (स्थिरता के लिए) चार अनुप्रेक्षाएँ हैं-(१) एकात्वानुप्रेक्षा-संसार परिभ्रमण ॥ और सुख-दुःख भोगने में आत्मा के एकाकीपन का चिन्तन करना। (२) अनित्यानुप्रेक्षा-सांसारिक पदार्थों की अनित्यता का चिन्तन करना। (३) अशरणानुप्रेक्षा-धन परिवार आदि कोई जीव का है शरणदाता नहीं, इस विषय का चिन्तन करना। (४) संसारानुप्रेक्षा-चतुर्गति रूप संसार की दशा का है चिन्तन करना।
68. There are four kinds of contemplations for (the stability of) dharmadhyana-(1) Ekatvanupreksha—to revolve around the thought that the soul is alone in suffering pleasure and pain. 4 (2) Anityanupreksha-to revolve around the thought that mundane things are ephemeral. (3) Asharananupreksha--to revolve around the thought that there is no succour and refuge of soul through wealth and family. (4) Samsaranupreksha-to revolve around the thought about the state of cycle of rebirth in the four genuses.
विवेचन-ध्यान की योग्यता प्राप्त करने के लिए चित्त की निर्मलता आवश्यक होती है, इस स्थिति की प्राप्ति के लिए चार अनुप्रेक्षाओं का निर्देश किया गया है।
धर्म्यध्यान का शब्दार्थ-जो धर्म से युक्त होता है, उसे धर्म्य कहा जाता है। धर्म शब्द के भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं, जैसे-आत्मा की निर्मल परिणति, मोह और क्षोभरहित परिणाम। धर्म का दूसरा अर्थ है-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र। धर्म का तीसरा अर्थ है-वस्तु का क स्वभाव। इन विषयों से सम्बन्धित चिन्तन की तन्मयता धर्म्यध्यान है।
धर्म्यध्यान के अधिकारी-अविरत, देशविरत, प्रमत्तसंयति और अप्रमत्तसंयति-इन सबको धर्म्यध्यान करने की योग्यता प्राप्त हो सकती है।
Elaboration-Purity of mind is essential for gaining the ability to meditate. Four kinds of anupreksha (contemplation) have been prescribed for this.
Meaning of dharmyadhyana-That which is inclusive of dharma is called dharmya. Dharma has varied meanings depending on the One meaning is purity of soul leading to the state free of attachment and aversion. Another meaning is combination of right perception, knowledge and conduct. Third meaning is the intrinsic qualities or nature of a thing. Engrossment in contemplation related to all these topics is dharmadhyana.
Qualification-Avirat (not detached), deshavirat (partially detached), oramattsamyati (accomplished but negligent), and apramattasamyati accomplished and alert) are those who are said to be qualified for lharmadhyana.
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चतुर्थ स्थान
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Fourth Sthaan
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