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________________ ) ) )) )) )) LEEEEEEEEE IFIFIEIPIrri-.-. )) ) ) )) म एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा-उण्णते णामेगे उण्णते, तहेव जाव [ 'उण्णते Aणाममेगे पणते, पणते णाममेगे उण्णते ] पणते णाममेगे पणते। ३. (२) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-उण्णते णाममेगे उण्णतपरिणते, उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममेगे पणतपरिणते। A एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा-उण्णते णाममेगे उण्णतपरिणते, चउभंगो [उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममेगे पणतपरिणते ।। ४. (३) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-उण्णते णाममेगे उण्णतरूवे, तहेव चउभंगो 1 [उण्णते णाममेगे पणतरूवे, पणते णाममेगे उण्णतरूवे, पणते णाममेगे पणतरूवे ] ___एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उण्णते णाममेगे उण्णतरूवे, [ उण्णते णाममेगे । पणतरूवे, पणते णाममेगे उण्णतरूवे, पणते णाममेगे पणतरूवे]। २. (१) वृक्ष चार प्रकार के होते हैं। जैसे-(१) कोई वृक्ष (शरीर आदि की अपेक्षा) भी उन्नत होता है और जाति व गुण आदि से भी उन्नत होता है, (जैसे-शाल, आम आदि वृक्ष)। (२) कोई वृक्ष शरीर (द्रव्य) से उन्नत, किन्तु जाति (भाव) से प्रणत (हीन) होता है, (जैसे-नीम आदि)। (३) कोई वृक्ष शरीर से प्रणत, किन्तु जाति से उन्नत होता है, (जैसे-अशोक, इलायची, लवंग आदि)। (४) कोई वृक्ष शरीर से प्रणत (हीन) और जाति से भी प्रणत (हीन) होता है, (जैसे-खैर, बबूल, बेर की झाड़ियाँ आदि)। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-(१) कोई पुरुष शरीर (या ऐश्वर्य) से भी उन्नत होता है और ज्ञानादि गुणों से भी उन्नत होता है, जैसे-भरत। (२) [कोई पुरुष शरीर से उन्नत होता है, किन्तु गुणों से प्रणत (हीन) होता है, (जैसे-ब्रह्मदत्त)। (३) कोई पुरुष शरीर से प्रणत और गुणों से उन्नत होता है, (जैसे-हरिकेश बल)। (४)] कोई शरीर से भी प्रणत होता है और गुणों से भी प्रणत होता है, (जैसे-कालशौकरिक)। ___३. (२) वृक्ष चार प्रकार के होते हैं। जैसे-(१) कोई वृक्ष शरीर से उन्नत और उन्नत-परिणत [रस आदि से युक्त होता है, (२) कोई वृक्ष उन्नत होकर भी प्रणत-परिणत [अशुभ रसादि से युक्त], (३) कोई वृक्ष द्रव्य से प्रणत और भाव की दृष्टि से उन्नत-परिणत, और (४) कोई वृक्ष द्रव्य से प्रणत और भाव से प्रणत-परिणत होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं, जैसे-(१) कोई पुरुष शरीर से उन्नत और उन्नत भाव से ज्ञानादि गुणों से परिणत होता है। वृक्ष की तरह चार भंग होते हैं-(२) [कोई शरीर से उन्नत और १. [] इस कोष्ठक में दिये गये सूत्र पाठ पुराने संस्करणों में नहीं हैं, किन्तु आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर तथा जैन विश्व भारती, लाडनूं के संस्करणों में हैं। 1. [] The text within these brackets is not available in old editions, it is available in editions published from Agam Prakashan Samiti, Beawar and Jain Vishvabharati, Ladnu. ) ) ))) )) )) ))) ) 4 चतुर्थ स्थान (325) Fourth Sthaan 五步步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙%%%%%%%%%%%%%%%%%% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
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