SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ தததததத****************************5 प्रथम उद्देशक FIRST LESSON अन्तक्रिया - पद ANT KRIYA-PAD (SEGMENT OF ANT-KRIYA) १. चत्तारि अंतकिरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा चतुर्थ स्थान FOURTH STHAAN (Place Number Four) ( १ ) तत्थ खलु इमा पढमा अंतकिरिया - अप्पकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले लूहे तीरट्ठी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी । तस्स णं णो तहम्पगारे तवे भवति, णो तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसजाते फ्र दीणं परियाएणं सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिणिव्याति सव्वदुक्खाणमंतं करेइ, जहा से भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी; पढमा अंतकिरिया । 卐 चतुर्थ स्थान फ्र Jain Education International ( २ ) अहावरा दोच्चा अंतकिरिया - महाकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए संजमबहुले संवरबहुले जाव उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी । तस्स णं तहप्पगारे तवे भवति, तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसजाते निरुद्धेणं परियाएणं सिज्झति 5 जाव अंतं करेति, जहा --से गयसूमाले अणगारे; दोच्चा अंतकिरिया । 卐 25959595559595959555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 559 5559595955 5 5 5 5 5 5 55 5 52 卐 (३) अहावरा तच्चा अंतकिरिया - महाकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता 卐 अगाराओ अणगारियं पव्वइए जहा दोच्चा नवरं । दीहेणं परियाएणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणमंतं 5 करेति, जहा से सणकुमारे राया चाउरंतचक्कवट्टी; तच्चा अंतकिरिया । 卐 (321) For Private & Personal Use Only फ्र (४) अहावरा चउत्था अंतकिरिया - अप्पकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए संजमबहुले जाव । तस्स णं णो तहप्पगारे तवे भवति, णो तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसजाते निरुद्धेणं परियाएणं सिज्झति जाव सव्यदुक्खाणमंतं करेति, जहा सा मरुदेवी भगवती; चउत्था अंतकिरिया । १. अन्तक्रिया चार प्रकार की होती है (१) प्रथम अन्तक्रिया - कोई पुरुष अल्प कर्मों के साथ मनुष्य जन्म को प्राप्त होता है । फिर वह मुण्डित होकर, घर त्यागकर, अनगार रूप में प्रव्रजित हो संयम - बहुल, संवर- बहुल और 5 समाधि - बहुल होकर रूक्ष (भोजन करता हुआ ) तीर का अर्थी ( संसार-समुद्र पार जाने का इच्छुक), उपधान तप करने वाला, दुःख को खपाने वाला तपस्वी होता है। उसके न तो उस प्रकार का घोर तप होता है और न उस प्रकार की घोर वेदना होती है । इस प्रकार का पुरुष दीर्घकाल तक साधु-पर्याय का Fourth Sthaan फ्र 卐 க 卐 卐 卐 卐 卐 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy