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5 (१) ज्ञान-प्रत्यनीक, (२) दर्शन-प्रत्यनीक, और (३) चारित्र-प्रत्यनीक। ३७५. श्रुत की अपेक्षा से 5
तीन प्रत्यनीक होते हैं-(१) सूत्र-प्रत्यनीक, (२) अर्थ-प्रत्यनीक, और (३) तदुभय-प्रत्यनीक। fi 370. With reference to guru (preceptor) there are three kinds of 5
pratyaneek (non-conformist)–(1) acharya-pratyaneek (opposed to acharya), (2) upadhyaya-pratyaneek (opposed to upadhyaya), and
(3) sthavir-pratyaneek (opposed to sthavir). 371. With reference to gati fi (incarnation) there are three kinds of pratyaneek (non-conformist)Fi (1) ihaloka-pratyaneek (contrary to this life), (2) paralok-pratyaneek
(contrary to next life), and (3) ubhayalok-pratyaneek (contrary to this as
well as next life). 372. With reference to samuha (group) there are three f kinds of pratyaneek (non-conformist)–(1) kula-pratyaneek (opposed to
the group of disciples of same acharya), (2) gana-pratyaneek (opposed to gana), and (3) sangh-pratyaneek (opposed to the religious organization). 373. With reference to anukampa (compassion) there are three kinds of pratyaneek (non-conformist)-(1) tapasvi-pratyaneek (pathetic to hermits or those observing austerities), (2) glan-pratyaneek (pathetic to the ailing), and (3) shaiksh-pratyaneek (pathetic to neo-initiates). 374. With reference to bhaava (attitude) there are three kinds of pratyaneek (non-conformist)—(1) jnana-pratyaneek (opposed to right knowledge), (2) darshan-pratyaneek (opposed to right perception/faith),
and (3) chaaritra-pratyaneek (opposed to right conduct). 375. With 6 reference to shrut (canon) there are three kinds of pratyaneek (non
conformist)–(1) Sutra-pratyaneek (opposed to text), (2) arth-pratyaneek (opposed to meaning), and (3) tadubhaya-pratyaneek (opposed to both text and its meaning).
विवेचन-प्रत्यनीक शब्द का अर्थ है मर्यादा विरुद्ध या प्रतिकूल आचरण करने वाला। दीक्षा देने वाला आचार्य और शिक्षा (ज्ञान) देने वाला उपाध्याय गुरु है। स्थविर भी वय, तप एवं ज्ञान-गरिमा की अपेक्षा गुरु तुल्य हैं। जो इन तीनों के प्रतिकूल आचरण करता है, उनकी यथोचित विनय नहीं करता, उनका अवर्णवाद करता और उनका छिद्रान्वेषण करता है उसे गुरु-प्रत्यनीक कहा जाता है।
इस लोक सम्बन्धी प्रचलित व्यवहार के प्रतिकूल आचरण करने वाला इहलोक प्रत्यनीक है। परलोक के योग्य सदाचरण न करके दुराचरण करने वाला परलोक-प्रत्यनीक होता है। दोनों लोकों के प्रतिकूल आचरण करने वाला उभयलोक-प्रत्यनीक कहा जाता है। ___साधुओं के लघु-समुदाय को अथवा एक आचार्य की शिष्य-परम्परा को कुल कहते हैं। परस्परसापेक्ष तीन कुलों का समुदाय गण तथा संयम-साधना करने वाले सभी साधुओं का समुदाय संघ कहा जाता है। इनकी निन्दा या अवहलेना करना प्रत्यनीकता है।
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