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३६५. नारक जीवों के तीन शरीर होते हैं-(१) वैक्रिय शरीर, (२) तेजस् शरीर, और 5 (३) कार्मण शरीर। ३६६. नारकों की तरह ही असुरकुमारों के तीन शरीर होते हैं। ३६७. इसी के प्रकार सभी देवों के तीन शरीर होते हैं। ३६८. पृथ्वीकायिक जीवों के तीन शरीर होते हैं-(१) 卐 + औदारिक शरीर (औदारिक पुद्गल वर्गणाओं से निर्मित अस्थि-माँसमय शरीर), (२) तेजस्, और (३) ॐ कार्मण शरीर। ३६९. इसी प्रकार वायुकायिक जीवों को छोड़कर चतुरिन्द्रिय तक के सभी जीवों के जतीन शरीर होते हैं। (वायुकायिकों के चार शरीर होने से उन्हें छोड़ दिया गया है।)
365. The sharir (body) of naarak jivas (infernal beings) is of three 4 kinds—(1) Vaikriya sharir (transmutable body), (2) Taijas sharir (fiery
body), and (3) Karman sharir (karmic body). 366. Like infernal beings Asur Kumars (a kind of divine beings) too have three kinds of body. 367. In the same way all the divine beings have three kinds of body. 368. The sharir (body) of prithvikayik jivas (earth-bodied beings) is of three kinds-(1) Audarik sharir (gross physical body made of gross matter particles and having bones and flesh), (2) Taijas sharir (fiery body), and (3) Karman sharir (karmic body). 369. In the same way, besides vayukayik jivas (air-bodied beings), all beings up to four sensed beings have three kinds of body. (air-bodied beings have been excluded because they have four kinds of body) प्रत्यनीक-पद PRATYANEEK-PAD (SEGMENT OF NON-CONFORMIST)
३७०. गुरुं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-आयरियपडिणीए, उवज्झायपडिणीए, थेरपडिणीए। ३७१. गतिं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-इहलोगपडिणीए, ॐ परलोगपडिणीए, दुहओलोगपडिणीए। ३७२. समूहं पुडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहाके कुलपडिणीए, गणपडिणीए, संघपडिणीए। ३७३. अणुकंपं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं
जहा-तवस्सिपडिणीए, गिलाणपडिणीए, सेहपडिणीए। ३७४. भावं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-णाणपडिणीए, दंसणपडिणीए, चरित्तपडिणीए। ३७५. सुयं पडुच्च तओ
पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-सुत्तपडिणीए, अत्थपडिणीए, तदुभयपडिणीए। म ३७०. गुरु की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक (प्रतिकूल व्यवहार करने वाले) होते हैं-(१) आचार्य+ प्रत्यनीक, (२) उपाध्याय-प्रत्यनीक, और (३) स्थविर-प्रत्यनीक। ३७१. गति की अपेक्षा से तीन
प्रत्यनीक होते हैं-(१) इहलोक-प्रत्यनीक, (२) परलोक-प्रत्यनीक, और (३) उभयलोक-प्रत्यनीक। म ३७२. समूह की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक होते हैं-(१) कुल-प्रत्यनीक, (२) गण-प्रत्यनीक, और
(३) संघ-प्रत्यनीक। ३७३. अनुकम्पा की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक होते हैं-(१) तपस्वी-प्रत्यनीक, ॐ (२) ग्लान-प्रत्यनीक, और (३) शैक्ष-प्रत्यनीक। ३७४. भाव की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक होते हैं
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म | स्थानांगसूत्र (१)
(296)
Sthaananga Sutra (1)
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