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विवेचन - ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आगम विहित आराधना के प्रतिकूल आचरण करने का मन में 5 विचार आना अतिक्रम है। इसके पश्चात् प्रतिकूल आचरण का प्रयास करना व्यतिक्रम है। इससे आगे बढ़कर आंशिक रूप में विरुद्ध आचरण करना अतिचार और पूर्ण रूप से व्रत की विराधना या दोष का सेवन अनाचार कहा जाता है।
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Elaboration-To think of violating the procedure of endeavour related to right knowledge, perception/faith and conduct prescribed in Agams is 5 called atikram. After this to make efforts of violating is called vyatikram. Then partial violation is atichaar and complete violation of the codes and vows is anachaar.
३२६. तिण्हमतिक्कमाणं - अलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, णिंदेज्जा, गरहेज्जा, जाव पडिवज्जेज्जा, तं जहा - णाणातिक्कमस्स, दंसणातिक्कमस्स, चरित्तातिक्कमस्स । ३२७. एवं वइक्कमाणं वि । ३२८. एवं अइयाराणं । ३२९. अणायाराणं ।
३२६. ज्ञानातिक्रम, दर्शनातिक्रम और चारित्रातिक्रम; इन तीनों प्रकार के अतिक्रमों की आलोचना करनी चाहिए, प्रतिक्रमण करना चाहिए, निन्दा करनी चाहिए, गर्हा करनी चाहिए, दोषों की निवृत्ति के लिए यथोचित प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म स्वीकार करना चाहिए। ३२७. इसी प्रकार इन तीनों प्रकार के व्यतिक्रमों की । ३२८. तीनों प्रकार के अतिचारों की, और ३२९. उक्त तीनों प्रकारों के अनाचारों की आलोचना आदि करनी चाहिए।
प्रायश्चित्त- पद PRAYASHCHIT-PAD (SEGMENT OF ATONEMENT)
३३०. तिविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा - आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे।
३३०. प्रायश्चित्त तीन प्रकार का है- (१) आलोचना के योग्य, (२) प्रतिक्रमण के योग्य, और (३) तदुभय (आलोचना और प्रतिक्रमण) के योग्य।
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326. One should criticize (alochana), do critical review (pratikraman), 5 reprove (ninda), reproach ( garha )... and so on up to... and accept suitable atonement and penance for committing the three kinds of aforesaid 5 atikram, i.e. jnana-atikram, darshan-atikram and chaaritra-atikram The same should be done for committing, 327. vyatikram, 328. atichaar, 5 and 329. anachaar.
विवेचन - भिक्षाचर्या आदि में लगे दोषों को सरल भाव से गुरु के समक्ष प्रकट करना आलोचना है। 'मिच्छामि दुक्कडं' लेना प्रतिक्रमण है। आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों करने को तदुभय कहते हैं ।
तृतीय स्थान
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Third Sthaan
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330. Prayashchit (atonement) is of three kinds – ( 1 ) requiring
alochana (criticism ), ( 2 ) requiring pratikraman (critical review), and फ्र (3) tadubhaya (requiring both alochana and pratikraman).
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