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चतुर्थ उद्देशक FOURTH LESSON
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प्रतिमा-पद PRATIMA-PAD (SEGMENT OF SPECIAL ASCETIC-CODES)
३०१. पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं जहा-अहे आगमणगिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिहंसि वा। ३०२. एवं अणुण्णवेत्तए। ३०३. एवं उवाइणित्तए।
३०१. प्रतिमा-प्रतिपन्न-(मासिकी आदि प्रतिमाओं को धारण करने वाले) अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों का प्रतिलेखन-(निवास के लिए) करना कल्पता है। 卐 (१) आगमनगृह-यात्रियों के ठहरने का स्थान, प्याऊ, धर्मशाला, सराय आदि। (२) विवृतगृह
अनाच्छादित-ऊपर से ढका एक-दो या चारों ओर से खुला। (३) वृक्षमूलगृह-वृक्ष के नीचे या वहाँ बनी ॐ पर्णकुटी आदि।
३०२. इसी प्रकार उक्त तीन प्रकार के उपाश्रयों की अनुज्ञा (उनके स्वामियों की आज्ञा या ॐ स्वीकृति) लेनी चाहिए। ३०३. आज्ञा लेकर उक्त तीन प्रकार के उपाश्रयों में रहना चाहिए।
301. Pratima-pratipanna (observer of special codes and resolutions for an ascetic) anagar (homeless ascetic) should inspect (pratilekhan) three kinds of upashrayas (places of stay for ascetics). They are
(1) Aagaman-griha--place of stay for travelers, pyau (water-hut), 5 dharmashala (rest-house for pilgrims), saraya (inn) etc. (2) Vivrit卐 griha-a covered place open from one, two or all sides. (3) Vrikshamulagriha-abode under a tree or a hut under a tree.
302. In the same way he should seek permission for stay from the owner of aforesaid three kinds of places. 303. After that he should stay at aforesaid three kinds of places.
३०४. पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा पडिलेहित्तए, तं जहापुढविसिला, कसिला, अहासंथडमेव। ३०५. एवं अणुण्णवेत्तए। ३०६. एवं उवाइणित्तए। म ३०४. प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों (बैठने-सोने का आसन) का प्रतिलेखन करना कल्पता है।
(१) पृथ्वीशिला-समतल भूमि या पाषाण-शिला। (२) काष्ठशिला-काठ का समतल भाग, तख्त ॐ आदि। (३) यथासंसृत-घास, पलाल आदि जो उपयोग के योग्य हो।
तृतीय स्थान
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Third Sthaan
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