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चित्र परिचय ११ ।
Illustration No. 11]
उपासना का फल श्रमण-माहन-(गुरुजनों की सेवा का फल क्रमशः इस प्रकार मिलता है(१) उनसे धर्म श्रवण का लाभ मिलता है। (२) धर्म सुनने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। (३) प्राप्त ज्ञान का चिन्तन-मनन करने से हेय-उपादेय का विशेष ज्ञान होता है। (४) हेय-उपादेय का ज्ञान होने पर प्रत्याख्यान की भावना जगती है। (५) प्रत्याख्यान करते हुए पूर्ण संयम की भी प्राप्ति होती है। (६) संयम करने वाला कर्मों के आस्रवों का निरोध कर संवर को प्राप्त होता है। (७) संवर से तप की सिद्धि होती है। (८) तप से पूर्व संचित कर्मों का क्षय होने लगता है।
(९) कर्म-क्षय करने का अन्तिम फल है-सर्व क्रियाओं का निरोध कर निर्वाण की प्राप्ति। चित्र की ॐ नौ आकृतियों में क्रमशः उपासना का फल बताया है।
-स्थान ३, सूत्र ३००
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FRUITS OF ASCETIC SERVICE The fruits of serving ascetics follow the following sequence
(1) The fruit of serving ascetics is the opportunity of listening to the sermon (dharma shravan).
(2) The fruit of dharma shravan is acquisition of knowledge (jnana).
(3) On contemplating and pondering over the acquired knowledge capacity to discern between acceptable and rejectable is acquired (vijnana).
(4) The fruit of vijnana is pratyakhyan (to renounce sinful activity). (5) The fruit of pratyakhyan is samyam (discipline).
(6) The fruit of samyam is anasrava or samvar (blockage of inflow of karmas).
(7) The fruit of anasrava is tap (austerities). (8) The fruit of tap is vyavadan (shedding of karmas).
(9) The fruit of vyavadan is akriya (complete cessation of all activity and inclination of mind, speech and body) leading to nirvana. The nine illustrations show these fruits.
-Sthaan 3, Sutra 300
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