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२९२. अविणए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-देसच्चाई, णिरालंबणता, णाणापेज्जदोसे। ॐ २९३. अण्णाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-देसण्णाणे, सवण्णाणे, भावण्णाणे।
___ २९१. अज्ञानक्रिया (मोक्ष मार्ग के विपरीत क्रिया) तीन प्रकार की है-(१) मति-अज्ञानक्रिया, ॐ (२) श्रुत-अज्ञानक्रिया, और (३) विभंग-अज्ञानक्रिया।
२९२. अविनय तीन प्रकार का है-(१) देशत्यागी-गुरु अथवा स्वामी आदि की सेवा करने के डर के से देश को छोड़कर चले जाना। (२) निरालम्बन-गच्छ या कुटुम्ब को छोड़ देना या उससे अलग हो जाना। (३) नानाप्रेयोद्वेषी-उपकारीजनों से द्वेष तथा असज्जनों से राग करना।
२९३. अज्ञान तीन प्रकार का है-(१) देश-अज्ञान-ज्ञातव्य वस्तु के किसी एक अंश को न जानना। (२) सर्व-अज्ञान-ज्ञातव्य वस्तु को सर्वथा समग्र रूप में नहीं जानना। (३) भाव-अज्ञानविपरीत दृष्टि के कारण मिथ्यादृष्टि का ज्ञान।
291: Ajnana kriya (action out of ignorance or going against the path o liberation is of three kinds—(1) mati-ajnana kriya (related to sensory knowledge), (2) shrut-ajnana kriya (related to scriptural knowledge), and (3) vibhang-ajnana kriya (related to pervert knowledge).
292. Avinaya (disrespect of sages) is of three kinds—(1) desh-tyagi—to abscond from the country for fear of serving the guru or master, 45 (2) niralamban-to abandon or severe ties with religious organization or
family, and (3) nanaprayodveshi-to have aversion for benefactors and attachment for rogues.
293. Ajnana (ignorance) is of three kinds—(1) desh-ajnana—to know a thing partially, (2) sarva-ajnana-to be completely ignorant of a thing _in every context, and (3) bhaava-ajnana-to have false knowledge
because of antithetical viewpoint. ॐ धर्म-पद DHARMA-PAD (SEGMENT OF VIRTUES)
२९४. तिविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे।
२९४. धर्म तीन प्रकार का है-(१) श्रुत-धर्म-(शास्त्रों का स्वाध्याय करना), (२) चारित्र-धर्म(संयम का परिपालन करना), (३) अस्तिकाय-धर्म-प्रदेश वाले द्रव्यों को अस्तिकाय कहते हैं और 卐 उनके स्वभाव को अस्तिकाय-धर्म कहा जाता है।
294. Dharma (inherent or absorbed virtues) are of three kinds(1) Shrut dharma (to study the canon and scriptures), (2) chaaritra dharma (observation of ascetic-discipline), and (3) astikaya dharma (entities with conglomerate of units of space, matter etc. are called astikaya; their intrinsic nature is called astikaya dharma).
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| स्थानांगसूत्र (१)
(272)
Sthaananga Sutra (1)
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