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उपक्रम-पद UPAKRAM-PAD (SEGMENT OF COMMENCEMENT)
२९५. तिविहे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा-धम्मिए उवक्कम, अधम्मिए उवक्कमे, धम्मियाऽधम्मिए उवक्कमे।
अहवा-तिविहे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा-आओवक्कमे, परोवक्कमे, तदुभयोवक्कमे। ___ २९५. उपक्रम-(उपायपूर्वक कार्य का आरम्भ करना) तीन प्रकार का है-(१) धार्मिक-उपक्रमश्रुत और चारित्ररूप धर्म की प्राप्ति के लिए प्रयास करना। (२) अधार्मिक-उपक्रम-असंयमवर्धक आरम्भ-कार्य करना। (३) धार्मिकाधार्मिक-उपक्रम-संयम और असंयमरूप कार्य करना। ____ अथवा उपक्रम तीन प्रकार का है-(१) आत्मोपक्रम-अपनी आत्म-शक्ति के विकास के लिए प्रयत्न । करना। (२) परोपक्रम-दूसरों के लिए प्रयत्नशील होना। (३) तदुभयोपक्रम-अपने और दूसरों के लिए कार्य करना। (उपक्रम का विस्तृत वर्णन अनुयोगद्वार, भाग १, पृष्ठ ११६ पर देखें)
295. Upakram (to commence with necessary preparation) is of three kinds-(1) dharmik upakram (to commence efforts to follow religion of scriptures and right conduct), (2) adharmik upakram (to commence indisciplined and sinful activity), and (3) dharmik-adharmik upakram
(to commence both disciplined and indisciplined activity). fi Also upakram is of three kinds—(1) atmopakram-to commence
efforts for one's spiritual uplift, (2) paropakram-to commence altruistic activity, and (3) tadubhayopakram-to do that for both, self and others. (for more details about upakram refer to Illustrated Anuyogadvar Sutra, Part 1, p. 116) वैयावृत्यादि-पद VAIYAVRITYA-PAD (SEGMENT OF SERVICE)
२९६. एवं वेयावच्चे। अणुग्गहे। २९७. अणुसट्ठी। उवालंभे एवमेक्केके तिनि आलावगा जहेव उवक्कमे।
२९६. इसी प्रकार वैयावृत्य-(सेवा तीन प्रकार की है-(१) आत्मवैयावृत्य, (२) पर-वैयावृत्य, , ; और (३) तदुभयवैयावृत्य। अनुग्रह (उपकार) तीन प्रकार का है। २९७. अनुशिष्टि (अनुशासन) तीन । प्रकार का है-(१) आत्मानुशिष्टि-(आत्मा पर अनुशासन), (२) परानुशिष्टि-दूसरों को हित शिक्षा देना),
और (३) तदुभयानुशिष्टि। उपालम्भ (उलाहना) भी तीन प्रकार का है। एक-एक के तीन आलापक उपक्रम की तरह समझना चाहिए।
296. In the same way vaiyavritya (service) is of three kinds1 (1) atma-vaiyavritya (service of self), (2) par-vaiyavritya (service of
मानना
नागाना
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तृतीय स्थान
(273)
Third Sthaan
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