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२७२. एकरात्रिकी भिक्षु - प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन नहीं करने वाले अणगार को तीन प्रकार के उपद्रव हो सकते हैं, अर्थात् ये तीन स्थान अहितकर, अशुभ, अक्षम, अनिःश्रेयसकारी और अनुगामिता (परलोक में दुःख) के कारण होते हैं
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२७२. एगरातियं भिक्खुपडिमं सम्मं अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा अहिताए
असुभाए अखमाए अणिस्सेयसाय अणाणुगामियत्ताए भवंति तं जहा - उम्मायं वा लभिज्जा, 5 दीहालियं वा रोगातंकं पाउणेज्जा, केवलीपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा ।
(१) या तो वह अनगार उन्माद को प्राप्त हो जाता है । (२) या दीर्घकालिक रोग या आतंक से ग्रसित 5 हो जाता है । (३) अथवा केवलिप्रज्ञप्त धर्म से भ्रष्ट हो जाता है।
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272. If an ascetic does not properly observe bhikshu - pratima of one 5 night duration he may suffer three kinds of afflictions, also these three sthaans (afflictions) are ahitakar (harmful ), ashubh (bad), aksham (improper), anihshreyash (disadvantageous) and ananugamik (cause of demeritorious bondage for future life)—
२७३. एगरातियं भिक्खुपडिमं सम्मं अणुपालेमाणस्स अणगारस्स तओ ठाणा हिताए सुभाए खमाए णिस्सेसार आणुगामियत्ताए भवंति तं जहा - ओहिणाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, मणपज्जवणाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, केवलणाणे वा से समुप्पज्जेज्जा ।
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(1) that ascetic either becomes mad, ( 2 ) or suffers from a chronic ailment and apprehension, (3) or drifts away from the path shown by the Omniscient.
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(१) या तो उक्त अनगार को अवधिज्ञान उत्पन्न होता है। (२) अथवा मनःपर्यवज्ञान प्राप्त होता है। (३) अथवा केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है।
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२७३. एकरात्रिकी भिक्षु - प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से यथाविधि पालन करने वाले अनगार को तीन विशेष उपलब्धियाँ होती हैं अर्थात् ये स्थान हितकर, शुभ, क्षेम, निःश्रेयसकारी और अनुगामिता के 5 कारण होते हैं
273. If an ascetic properly following prescribed procedure observes bhikshu-pratima of one night duration he may beget three special 5 attainments, also these three sthaans (afflictions) are hitckar (beneficial), shubh (good), ksham (proper ), nihshreyash (advantageous) and ananugamik (cause of liberation in future life)
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(1) that ascetic either acquires avadhi-jnana, (2) or manahparyava - 5 (3) or keval-jnana.
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