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२६९. शल्य तीन प्रकार के हैं- (१) मायाशल्य, (२) निदानशल्य, और (३) मिथ्यादर्शनशल्य |
269. Shalya is of three kinds-(1) maya shalya (thorn of deceit),
5 (2) nidan shalya (thorn of desire), and (3) mithyadarshan shalya (thorn of false or wrong perception/faith).
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शल्य-पद SHALYA PAD (SEGMENT OF THORN)
२६९. तओ सल्ला पण्णत्ता, तं जहा - मायासल्ले, णियाणसल्ले, मिच्छादंसणसल्ले ।
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तेजोलेश्या- पद TEJOLESHYA-PAD (SEGMENT OF FIRE POWER)
२७०. तिहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे संखित्त - विउलतेउलेस्से भवति, तं जहा - आयावणयाए,
खंतिखमाए, अपाणगेणं तवोकम्मेणं ।
२७०. तीन कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ को संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्या उत्पन्न होती हैं
(१) आतापना लेने से - सूर्य की प्रचण्ड किरणों द्वारा उष्णता सहन करने से ।
(२) क्षान्ति - क्षमा धारण करने से बदला लेने के लिए समर्थ होते हुए भी क्रोध पर विजय पाने से । (३) अपानक तपःकर्म से - निर्जल - तपश्चरण करने से।
270. For three reasons a Shraman nirgranth acquires sankshipt vipul tejoleshya (controlled potent fire power)
(1) by enduring terrible heat of scorching sun rays (aataapana).
(2) by forbearance and forgiveness (kshanti-kshama), for example to control one's anger in spite of having power to avenge.
( 3 ) by observing austerities without consuming water.
विवेचन - विपुल तेजोलेश्या एक प्रकार की संहारक महा ज्वाला है। तपस्वी अनगार इसे अपने भीतर समाहित ( संक्षिप्त) कर, दमन करके रखता है ।
२७१. त्रैमासिक भिक्षु प्रतिमा को स्वीकार करने वाले अनगार के लिए तीन दत्तियाँ भोजन की 5 और तीन दत्तियाँ पानक की ग्रहण करना कल्पता है।
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Elaboration-Vipul tejoleshya is a kind of destructive fire power. An austere ascetic keeps it absorbed and controlled within himself.
भिक्षु - प्रतिमा - पद BHIKSHU PRATIMA-PAD (SEGMENT OF BHIKSHU-PRATIMA)
२७१. तिमसियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स कप्पंति तओ दत्तीओ भोअणस्स पडिगाहेत्तए, तओ पाणगस्स ।
271. For an ascetic observing bhikshu-pratima (special codes and resolutions for an ascetic) of three month duration it is proper to take
three dattis (servings) of food and three servings of drinks.
तृतीय स्थान
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Third Sthaan
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