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२४४. तिहिं ठाणेहिं महावुट्ठीकाए सिया, तं जहाॐ (१) तस्सिं च णं देसंसि वा पदेसंसि वा बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताए वक्कमति विउक्कमति चयंति उववज्जंति।
(२) देवा णागा जक्खा भूता सम्ममाराहित भवंति, अण्णत्थ समुट्टितं उदगपोग्गलं परिणयं वासितुकामं तं देसं साहरंति।
(३) अब्भवद्दलगं च णं समुट्ठितं परिणयं वासितुकामं णो वाउआए विधुणति। इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं महावृढिकाए सिया।
२४४. तीन कारणों से महावृष्टि होती हैम (१) जब उस देश या प्रदेश में बहुत से उदक योनिक जीव और पुद्गल अप्काय योनि में उत्पन्न
होते हैं। 卐 (२) जब उस देश व प्रदेश में देव, नाग, यक्ष या भूतों की सम्यक् प्रकार से आराधना होने पर वे
अन्य देश में उठे हुए वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले उदक-पुद्गलों को उस देश में संहरण कर लेते हैं।
(३) जब बरसने के लिए परिणत बादलों को वायुकाय विध्वंस नहीं करता। 244. There are three reasons of mahavrishti (heavy rainfall)
(1) When in that country or state many water-bodied beings and particles are born or created in the form of water.
(2) When properly worshipped gods, naag, yaksh or bhoot sweep in \ the water particles created in other areas and transformed into rain 卐 clouds.
(3) When air-bodied beings do not disperse the rain bearing clouds about to rain.
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पत्र-देव-आगमन-पद ADHUNOPAPANNA-DEV-AAGAMAN-PAD
____ (SEGMENT OF COMING OF NEWBORN GODS) २४५. तिहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्यमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हब्बमागच्छित्तए, तं जहा4 (१) अहुणोववण्णे देये देवलोगेसु दिव्येसु कामभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे, से णं
माणुस्सए कामभोगे णो आढाइ, णो परियाणाइ, णो अटुं बंधइ, णो णियाणं पगरेइ, णो ठिइपकप्पं पगरेइ।
(२) अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्येसु कामभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववणे, तस्स म णं माणुस्सए पेम्मे वोच्छिण्णे दिब्ये संकंते भवति।
तृतीय स्थान
(251)
Third Sthaan
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