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因听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。
* अनुज्ञादि-पद ANUJRADI-PAD (SEGMENT OF APPROVAL) म २३५. तिविहा अणुण्णा पण्णत्ता, तं जहा-आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए, गणित्ताए।
२३६. तिविहा समणुण्णा पण्णत्ता, तं जहा-आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए, गणित्ताए। २३७. एवं फ़ उवसंपया एवं २३८. विजहणा।
२३५. अनुज्ञा तीन प्रकार की होती है-(१) आचार्यपद की, (२) उपाध्यायपद की, और (३) गणिपद की। २३६. समनुज्ञा तीन प्रकार की होती है-(१) आचार्यपद की, (२) उपाध्यायपद की,
और (३) गणिपद की। २३७. इसी प्रकार उपसम्पदा तीन प्रकार की है। २३८. विहान (परित्याग) के तीन प्रकार का है।
235. Anujna (approval) is of three kinds—(1) for acharyapad (status of acharya), (2) for upadhyayapad (status of upadhyaya), and (3) 'fi ganipad (status of gani). 236. Samanujna ( special approval) is of three
kinds—(1) for acharyapad (status of acharya), (2) for upadhyayapad (status of upadhyaya), and (3) for ganipad (status of gani). 237. In the same way upasampada (study under outside guru) is of three kinds. 238. Vihan (resignation) is of three kinds.
विवेचन-श्रमण-संघ में आचार्य, उपाध्याय और गणी (गण-नायक) ये तीन महत्त्वपूर्ण पद हैं। प्राचीन परम्परा के अनुसार ये तीनों पद या तो आचार्यों के द्वारा दिये जाते थे अथवा स्थविरों के 卐 अनुमोदन (अधिकार प्रदान) से प्राप्त होते थे। यह अनुमोदन सामान्य और विशिष्ट दोनों प्रकार का होता 卐
था। सामान्य अनुमोदन को 'अनुज्ञा' और विशिष्ट अनुमोदन को 'समनुज्ञा' कहते हैं। उक्त पद प्राप्त करने % वाला व्यक्ति यदि उस पद के योग्य सम्पूर्ण गुणों से युक्त हो तो उसे दिये जाने वाले अधिकार को 卐 + 'समनुज्ञा' और यदि वह समग्र गुणों से युक्त नहीं हो, तब उसे दिये जाने वाले अधिकार को 'अनुज्ञा'
कहा जाता है। प्राचीनकाल में ज्ञान-दर्शन-चारित्र की विशेष प्राप्ति के लिए अपने गण के आचार्य, ॐ उपाध्याय या गणी को छोड़कर दूसरे गण के आचार्य, उपाध्याय या गणी के पास जाकर उनका शिष्यत्व
स्वीकार करने की परम्परा थी, इसे 'उपसम्पदा' कहते हैं। विशेष प्रयोजन होने पर आचार्य, उपाध्याय
या गणी अपने पद का त्याग कर देते थे, अथवा किसी को संघ से बाहर किया जाना हो तो उसे विहान 卐 कहते हैं। (विशेष विवरण के लिए देखें ठाणं, पृष्ठ २७४ तथा हिन्दी टीका पृष्ठ ४८०) 5 Elaboration—In the ascetic organization (Shraman Sangh) there are
three important positions of authority-acharya (head of the sangh), upadhyaya (teacher of scriptures or ascetic preceptor) and gani (leader of a group). According to the ancient tradition these positions were awarded either by acharyas or on approval of sthavirs (senior ascetics). This approval was normal as well as special. Normal approval is called anujna and special approval is called samanujna. If the person being awarded these positions is fully qualified in all respects the approval is
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स्थानांगसूत्र (१)
(248)
Sthaananga Sutra (1)
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