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(before self), reproach (garha) (before the guru), refrain from doing the act (vyavartan), purge himself (shuddhi), resolve not to repeat, or accept suitable atonement and penance (as by doing so) (1) I will become disreputable (apkirti). (2) I will be dishonoured (avarnavad). (3) Others will ignore me (avinaya).
२२४. तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु णो आलोएज्जा, जाव पडिवज्जेज्जा, तं जहा-कित्ती वा मे परिहाइस्सति, जसो वा मे परिहाइस्सति, पूयासक्कारे वा मे परिहाइस्सति।
२२४. मायावी माया करके भी निम्न तीन कारणों से उसकी आलोचना नहीं करता यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म अंगीकार नहीं करता-(ऐसा करने से)-(१) मेरी कीर्ति (एक प्रदेश में फैली प्रसिद्धि) कम होगी। (२) मेरा यश (सब प्रदेशों में व्याप्त प्रसिद्धि) कम होगा। (३) मेरा पूजासत्कार (सन्मान और प्रतिष्ठा) कम होगा।
224. For three reasons a fraud, even after cheating, does not criticize (alochana) the act, ... and so on up to... accept suitable atonement and penance (as by doing so—(1) It will reduce my kirti (fame in a specific area). (2) It will reduce my yash (fame all around). (3) It will belittle my honour and status.
२२५. तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु आलोएज्जा, जाव पडिवज्जेज्जा, तं जहा-माइस्स णं अस्सिं लोगे गरहिए भवति, उववाए गरहिए भवति, आयाती गरहिया भवति। ___२२५. मायावी माया करके तीन कारणों से उसकी आलोचना करता है, यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म अंगीकार करता है-(क्योंकि)-(१) मायावी का यह लोक (वर्तमान जीवन) गर्हित हो जाता है। (२) मायावी का उपपात (अगला जन्म) गर्हित हो जाता है। (३) मायावी की आजाति (अग्रिम भव से आगे का जन्म) गर्हित हो जाता है।
225. For three reasons a fraud, after cheating, does criticize (alochana) the act, ... and so on up to... accept suitable atonement and penance (because) (1) This life (ihalok) of a fraud is condemned. (2) Next life (upapat) of a fraud is condemned. (3) Next to next life (aajati) of a fraud is condemned.
२२६. तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु आलोएज्जा, जाव पडिवज्जेज्जा, तं जहा-अमाइस्स णं अस्सिं लोगे पसत्थे भवति, उववाते पसत्थे भवति, आयाती पसत्था भवति।
२२६. मायावी माया करके तीन कारणों से उसकी आलोचना करता है, यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म अंगीकार करता है-(१) मायाचार नहीं करने वाले का यह लोक प्रशस्त होता है, (२) उपपात प्रशस्त होता है, और (३) आजाति प्रशस्त होती है।
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तृतीय स्थान
(243)
Third Sthaan
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