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तृतीय उद्देशक THIRD LESSON
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आलोचना-पद (आलोचना नहीं करने व करने के कारण) ALOCHANA-PAD
(SEGMENT OF CRITICISM) २२२. तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु णो आलोएग्जा, णो पडिक्कमेज्जा, णो णिंदेजा. णो म गरिहेज्जा, णो विउट्टेजा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भुटेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा-अकरिसु वाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं।
२२२. मायावी माया करके भी निम्न तीन कारणों से उसकी आलोचना नहीं करता, प्रतिक्रमण ॐ नहीं करता, आत्मसाक्षी से निन्दा नहीं करता, गुरुसाक्षी से गर्दा नहीं करता, व्यावर्तन (उस सम्बन्धी के + अध्यवसाय से निवर्तन) नहीं करता, उसकी शुद्धि नहीं करता, “पुनः नहीं करूँगा''-ऐसा संकल्प नहीं
करता और यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म अंगीकार नहीं करता (क्योंकि)-(१) मैंने जकरणीय म किया है। (अब कैसे उसकी निन्दादि करूँ?) (२) मैं अकरणीय कर रहा हूँ। (तो कैसे उसकी निन्दादि ॥ करूँ?) (३) मैं अकरणीय करूँगा। (तो फिर उसकी निन्दादि कैसे करूँ?) ।
222. For three reasons a fraud, even after cheating, does not criticize (alochana) the act, do critical review (pratikraman), reprove (ninda) (before self), reproach (garha) (before the guru), refrain from doing the act (vyavartan), purge himself (shuddhi), resolve not to repeat, or accept suitable atonement and penance (because)-(1) I have committed a fi misdeed. (Now how can I criticize that ?) (2) I am committing a misdeed. si (So how can I criticize it ?) (3) I will commit a misdeed. (How then will I criticize it ?)
२२३. तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु णो आलोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा, णो णिंदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउद्देज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भुटेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं । तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा-अकित्ती वा मे सिया, अवण्णे वा मे सिया, अवणिए वा मे सिया। __ २२३. मायावी माया करके भी निम्न तीन कारणों से उसकी आलोचना नहीं करता, प्रतिक्रमण, नहीं करता, निन्दा नहीं करता, गर्दा नहीं करता, व्यावर्तन नहीं करता, उसकी शुद्धि नहीं करता, पुनः " नहीं करने के लिए संकल्पबद्ध नहीं होता और यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म अंगीकार नहीं करता(ऐसा करने से)-(१) मेरी अपकीर्ति होगी। (२) मेरा अवर्णवाद होगा। (३) दूसरों के द्वारा मेरा अविनय (अवेहलना) होगा।
223. For three reasons a fraud, even after cheating, does not criticize (alochana) the act, do critical review (pratikraman), reprove (ninda)
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! स्थानांगसूत्र (१)
(242)
Sthaananga Sutra (1)
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