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विवेचन - आकाश सब द्रव्यों का आधारभूत है। रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियों के नीचे प्रत्येक पृथ्वी नीचे बीच-बीच में तीन वलय हैं। सबसे नीचे तनुवात जो सूक्ष्म पवन है, उस पर घनबात यह पिघले घी के समान कुछ ठोस पवन है, उस पर घनोदधि बर्फ के रूप में जमा हुआ जल, जो जमे हुए घी के समान ठोस है। उस पर रत्नप्रभा आदि पृथ्वियाँ स्थित हैं। (भगवतीसूत्र, शतक १२/१)
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२०४. दिशाएँ तीन हैं-ऊर्ध्वदिशा, अधोदिशा और तिर्यग्दिशा । २०५. तीनों दिशाओं में जीवों की (१) गति होती है- ऊर्ध्वदिशा में, अधोदिशा में और तिर्यग्दिशा में। २०६. इसी प्रकार तीनों दिशाओं से जीवों की (२) आगति - (आगमन), (३) अवक्रान्ति - (उत्पत्ति), (४) आहार, (५) वृद्धि, (६) निवृद्धि (हान), (७) गति - पर्याय, (८) समुद्घात, (९) कालसंयोग, (१०) दर्शनाभिगम - (प्रत्यक्षदर्शन से होने बाला बोध), (११) ज्ञानाभिगम - ( प्रत्यक्षज्ञान के द्वारा होने वाला बोध), और (१२) जीवाभिगम - (जीव5 विषयक बोध) होता है। २०७. तीनों दिशाओं में अजीवाभिगम होता है- ऊर्ध्वदिशा में, अधोदिशा में और तिर्यग्दिशा में । २०८. इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनि वाले जीवों की गति, आगति आदि तीनों दिशाओं होती है। २०९. इसी प्रकार मनुष्यों की भी गति, आगति आदि तीनों ही दिशाओं में होती है।
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Elaboration-Space is the base of all entities. Under each of the seven prithvis (hells) or in the intervening space between each of the seven prithvis, that are located one above the other, are three rings. Lowest is tanuvaat that is rarefied air. Over it is ghanavaat that is butter-like dense air. Over this is ghanod that is dense or frozen water. Over these 卐 three rings rests each prithvi. (Bhagavati Sutra 12 / 1 )
दिशा- पद DISHA - PAD (SEGMENT OF DIRECTIONS)
२०४. तओ दिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-उड्डा, अहा, तिरिया । २०५. तिहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति-उड्डए, अहाए, तिरियाए । २०६. एवं तिहिं दिसाहिं जीवाणं- आगती, वक्कंती, आहारे, बुड्डी, णिवुड्डी, गतिपरियाए, समुग्धाते, कालसंजोगे, दंसणाभिगमे, णाणाभिगमे, जीवाभिगमे । २०७. तिहिं दिसाहिं जीवाणं अजीवाभिगमे पण्णत्ते, तं जहा-उड्डाए, अहाए, तिरियाए । २०८. एवं - पंचिंदियतिरिक्ख जोणियाणं । २०९. एवं मणुस्साणवि ।
204. There are three dishas ( directions ) - urdhva disha (upper direction or zenith), adho disha (lower direction or nadir) and tiryak disha (transverse direction). 205. Jivas (beings or souls ) have (1) gati (movement) in all the three directions-urdhva disha, adho disha and tiryak disha. 206. In the same way jivas have the following in all the three directions - (2) aagati ( arrival from), (3) avakranti (origination), (4) ahar (food intake), (5) vriddhi (growth), (6) nivriddhi (decay), (7) gati - paryaya (physical movement), (8) samudghat (bursting; the process 15 employed for transmutation and transformation ), ( 9 ) kaal-samyog (time 5 association, such as time of death etc.), (10) darshanabhigam (knowledge
तृतीय स्थान
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Third Sthaan
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