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acquired through direct perception), (11) jnanabhigam (knowledge acquired through self realization), (12) jivabhigam (knowledge of beings Sand soul) 207. Ajivabhigam is in all the three directions —urdhva disha, Sudho disha and tiryak disha. 208. In the same way gati, agati etc. of fiveFrensed animals is in all the three directions. 209. In the same way gati, Fugati etc. of human beings is in all the three directions.
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पुस- स्थावर - पद TRAS STHAVAR-PAD (SEGMENT OF MOBILE AND IMMOBILE)
२१०. तिविहा तसा पण्णत्ता, तं जहा - तेउकाइया, वाउकाइया, उराला तसा पाणा । २११. तिविहा थावरा पण्णत्ता, तं जहा - पुढविकाइया, आउकाइया, वणस्सकाइया ।
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२१०, त्रसजीव तीन प्रकार के होते हैं - तेजस्कायिक, वायुकायिक और उदार सप्राणी ( द्वीन्द्रियादि) । २११. स्थावर जीव तीन प्रकार के होते हैं- पृथ्वीकायिक, अष्कायिक और वनस्पतिकायिक ।
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210. Tras jiva (mobile beings) are of three kinds-tejaskayik (firebodied), vayukayik (air-bodied) and udaar tras prani (willfully moving beings). 211. Sthavar jiva (immobile beings) are of three kindsprithviknyik (earth-bodied ), apkayik (water-bodied) and vanaspatikayik plant-bodied).
5 विवेचन प्रस्तुत सूत्र में तेजस्कायिक और वायुकायिक को गति की अपेक्षा त्रस कहा गया है। पर उनके स्थावर नामकर्म का उदय है अतः वे वास्तव में स्थावर ही हैं।
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Elaboration-In this aphorism fire-bodied and air-bodied beings have been classified as mobile beings because of their natural physical movement but not willful movement. However, due to fruition of sthavar aam karma (karma responsible for immobile origin with absence of willful movement) they are in fact immobile.
अच्छे-आदि- पद ACHCHHEDYADI-PAD (SEGMENT OF IMPENETRABILITY ETC.)
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फे २१२. तओ अच्छेज्जा (१) पण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, परमाणू । २१३. एवमभेज्जा, २) अडज्झा, (३) अगिज्झा, (४) अणड्डा, (५) अमज्झा, (६) अपएसा ( ७ ) । तओ अभेज्जा मण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, परमाणू । २१४. तओ अणज्झा पण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, रमाणू २१५. तओ अगिज्झा पण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, परमाणू । २१६. तओ अणड्डा तं जहा - समए,
पदेसे,
प्रापण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, परमाणू । २१७. तओ अमज्झा पण्णत्ता, परमाणू । २१८. तओ अपएसा पण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, परमाणू । २१९. तओ प्रतिभाइमा पण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, परमाणू ।
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卐 २१२. तीन अच्छेद्य (जिनका छेदन नहीं हो सकता) होतें हैं - ( १ ) समय (काल का सबसे छोटा
प्रभाग) (२) प्रदेश (आकाश आदि द्रव्यों का सबसे छोटा भाग) और (३) परमाणु (पुद्गल का सबसे कोटा भाग)। २१३. इसी प्रकार तीन अभेद्य, अदाह्य, अग्राह्य, अनर्ध, अमध्य और अप्रदेशी होता है।
जैसे अभेद्य (भेदन करने के अयोग्य हैं- समय प्रदेश और परमाणु । २१४. तीन अदाह्य (दाह करने के
स्थानांगसूत्र (१)
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Sthaananga Sutra (1)
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