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________________ 3) ))))))555555555555555555) १९५. एवं आगंता णामेगे सुमणे भवइ (३)। १९६. एमीतेगे सुमणे भवइ (३)। १९७. एस्सामीति एगे सुमणे भवइ (३)। एवं एएणं अभिलावेणं१९८. १. गंता य अगंता (य), २. आगंता खलु तहा अणागंता। ३. चिट्ठित्तमचिट्ठित्ता, ४. णिसिइत्ता चेव नो चेव॥ ५. हंता य अहंता य, ६. छिंदित्ता खलु तहा अच्छिंदित्ता। ७. बूइत्ता अबूइत्ता, ८. भासित्ता चेव णो चेव॥ ९. दच्चा य अदच्चा य, १०. भुंजित्ता खलु तहा अभुंजित्ता। ११. लंभित्ता अलंभित्ता, १२. पिइत्ता चेव णो चेव॥ १३. सुइत्ता असुइत्ता, १४. जुज्झित्ता खलु तहा अजुज्झित्ता। १५. जइत्ता अजयित्ता य, १६. पराजिणित्ता य चेव नो चेव॥ १७. सद्दा, १८. रूवा। १९. गंधा, २०. रसा य। २१. फासा तहेव ठाणा य। (२१ x ६ = १२६ + १ = १२७) निस्सीलस्स गरहिता, पसत्था पुण सीलवंतस्स। एवमिक्केक्के तिन्नि उ तिन्नि उ आलावगा भाणियव्वा। सदं सुणेत्ता णामेगे सुमणे भवइ (३)। एवं सुणेमीति. (३), सुणिस्सामीति. (३)। एवं असुणेत्ता. णामेगे सुमणे भवइ। न सुणेमीति। न सुणिस्सामीति। एवं रूवाइं, गंधाइं, रसाई, फासाई, एक्केक्के छ-छ आलावगा भाणियब्वा। १८८. तीन प्रकार के पुरुष होते हैं, जैसे-(१) सुमनस्क-सुन्दर मन वाले, (२) दुर्मनस्क-असुन्दर # मन वाले, और (३) न सुन्दर न असुन्दर मन वाले (मध्यस्थ वृत्ति रखने वाले)। १८९. (विभिन्न प्रसंगों की अपेक्षा से) तीन प्रकार के पुरुष होते हैं, जैसे-(१) कोई पुरुष कहीं जाकर हर्षित होता है, (२) कोई कहीं जाकर दुःखित होता है, और (३) कोई न हर्षित होता है न दुःखी होता है (तटस्थ रहता है)।.(ये अतीतकाल के तीन भंग हैं।) १९०. तीन प्रकार के पुरुष होते हैं, जैसे(१) कोई मैं जाता हूँ, ऐसा विचार कर प्रसन्न होता है, (२) कोई मैं जाता हूँ, इस विचार से दुःखी होता है, और (३) कोई मैं जाता हूँ, इससे न सुखी और न दुःखी होता है। (ये वर्तमान क्रिया के तीन भंग हैं।) १९१. इसी प्रकार कोई पुरुष किसी स्थान पर जाऊँगा, ऐसा विचार करने पर सुमन होता है, दुर्मन होता है कोई समभावयुक्त रहता है। (ये भविष्यत् काल के तीन भंग हैं।) 855)))))))))555555555555555555555555555555555555558 तृतीय स्थान (227) Third Sthaan 步步步步步步步步步步步步步$$$$$$$$$$步步步步步步步另%%% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
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