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१८६. तीन शैक्षभूमियाँ हैं-(१) उत्कृष्ट, छह मास की, (२) मध्यम, चार मास की, और (५) जघन्यक सात दिन-रात की। ___186. Shaiksh-bhumi (period of training) is of three kinds(1) maximum of six months, (2) medium of four months, and (33 minimum of seven days and nights.
विवेचन-सामायिक चारित्र ग्रहण करने वाला नवदीक्षित साधु 'शैक्ष' है और उसके अभ्यास-काला को 'शैक्षभूमि' कहा जाता है। दीक्षा ग्रहण करने के समय सर्व सावध प्रवृत्ति का त्याग करके सामायिक चारित्र अंगीकार किया जाता है। सामायिक चारित्र दो प्रकार का है-(१) यावत्कथिक-(जीवन पर्यन्त यह मध्यवर्ती २२ तीर्थंकरों के शासन में होता है। (२) इत्वरिक-यह प्रथम, अन्तिम तीर्थंकरों के शासक में होता है। इत्वरिक सामायिक चारित्र छेदोपस्थापनीय चारित्र की पूर्व भूमिका है। उसमें निपुणता प्राप्त कर लेने पर छेदोपस्थापनीय चारित्र स्वीकार किया जाता है। प्रस्तुत सूत्र में सामायिक चारित्र की तीन भूमियाँ बतलाई हैं-(१) छह मास की उत्कृष्ट शैक्षभूमि के पश्चात् निश्चित रूप से छेदोपस्थापनीय चारित्र स्वीकार करना आवश्यक होता है। यह मन्दबुद्धि शिष्य की भूमिका है। उसे दीक्षित होने के छह मास के भीतर साधु समाचारी का भली-भाँति अभ्यास कर लेना चाहिए। (२) जो इससे अधिक बुद्धिमान शिष्या होता है, वह उक्त कर्त्तव्यों का चार मास में अभ्यास कर लेता है और उसके पश्चात् छेदोपस्थापनीय चारित्र अंगीकार करता है। यह शैक्ष की मध्यम भूमिका है। (३) जो नवदीक्षित प्रबल बुद्धि एवं प्रतिभावान होता है वह उक्त कार्यों को सात दिन में ही सीखकर छेदोपस्थानीय चारित्र को धारण कक लेता है, यह शैक्ष की जघन्य भूमिका है। (व्यवहारभाष्य, उ. २, गा. ५३-५४)
Elaboration-A newly initiated ascetic who has accepted the samayik's chaaritra (ascetic-conduct) is called shaiksh and the period of hissi training is called shaiksh-bhumi. At the time of initiation all sinfu tendency and activity is abandoned before accepting samayik-chaaritra Ascetic conduct or samayik-chaaritra is of two kinds-(1) yavathathiti (lifelong) which is applicable only to the periods of influence of twenty two Tirthankars besides the first and the last. (2) Itvarik (for a specifichi period of time or temporary) which is applicable to the periods of influence of the first and the last Tirthankars. Itvarik samayik-chaaritrar is preparatory practice for qualifying to accept Chhedopasthaniya, Chaaritra (conduct of re-initiation after rectifying faults). In this aphorism three durations of training at the Samayik chaaritra level have been mentioned—(1) It is mandatory to accept Chhedopasthaniya Chaaritra after a maximum period of training of six months. This duration is meant for a dull disciple. He should properly complete higi training of the ascetic praxis (sadhu-samachari) within six months ofhi initiation. (2) Slightly more intelligent disciples complete this trainings
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