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संगारप्रव्रज्या के लिए मेतार्य के नाम का उल्लेख किया है। (दशवें स्थान, सूत्र १५ में दस प्रकार की प्रव्रज्या का वर्णन है। इसके परिशिष्ट में सम्बन्धित टीका के उदाहरण भी दिये हैं। देखें-परिशिष्ट)
Elaboration-Abhayadev Suri, the commentator (Tika), has given examples of Sagar Chandra for todayitva pravrajya; Arya Rakshit for fi plavayitva pravrajya; and Halik farmer, who got initiated after a
discussion with Gautam Swami, for vachayitva pravrajya. In the same way he has mentioned the name of Phalgurakshit for akhyaat pravrajya
and Metarya for sangaar pravrajya. (for these stories refer to Sthananga f Sutra-I edited by Muni Jambuvijaya ji, appendix 1, pp. 10-16) # निर्ग्रन्थ-पद NIRGRANTH-PAD (SEGMENT OF ACCOMPLISHED ASCETICS)
१८४. तओ णियंठा णोसण्णोवउत्ता पण्णत्ता, तं जहा-पुलाए, णियटे, सिणाए।१८५. तओ मणियंठा सण्णा-णोसण्णोवउत्ता पण्णत्ता, तं जहा-बउसे, पडिसेवणाकुसीले, कसायकुसीले।
१८४. तीन प्रकार के निर्ग्रन्थ नोसंज्ञा से उपयुक्त होते हैं-(१) पुलाक, (२) निर्ग्रन्थ, और मी (३) स्नातक। १८५. तीन प्रकार के निर्ग्रन्थ संज्ञा और नोसंज्ञा, इन दोनों से उपयुक्त होते हैं(१) बकुश, (२) प्रतिसेवनाकुशील, और (३) कषायकुशील।
184. Three kinds of nirgranthas (accomplished ascetics) are nosanjnopayukt (endowed with no-sanjna or freedom from desires and perversions)—(1) pulaak, (2) nirgranth, and (3) snatak. 185. Three kinds of nirgranthas (accomplished ascetics) are both no-sanjnopayukt (endowed with no-sanjna or freedom from desires and perversions) and sanjnopayukt (encumbered with sanjna or desires and perversions)
(1) bakush, (2) pratisevanakusheel, and (3) kashayakusheel. 卐 विवेचन-आहार आदि की अभिलाषा या मनोविकार को संज्ञा कहते हैं। जो इस प्रकार की संज्ञा से
युक्त होते हैं उन्हें संज्ञोपयुक्त और जो इस प्रकार की संज्ञा से मुक्त होते हैं, उन्हें नो संज्ञोपयुक्त कहते हैं। ॐ इन दोनों प्रकार के निर्ग्रन्थों का स्वरूप इस प्रकार है
(१) पुलाक निर्ग्रन्थ-तपस्या द्वारा लब्धि प्राप्त होने पर क्रोधादि वश होकर उसका उपयोग करके . ॐ अपने संयम को धान्यरहित भूसी के समान सारहीन करने वाले साधु ।
(२) निर्ग्रन्थ-जिसके मोह-कर्म उपशान्त हो गया है, ऐसे ग्यारहवें गुणस्थानवर्ती और जिसका मोहकर्म क्षय हो गया है ऐसे बारहवें गुणस्थानवर्ती मुनि निर्ग्रन्थ कहे जाते हैं।
(३) स्नातक-घनघाति चारों कर्मों का क्षय करने वाले तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवर्ती अरहन्तों कको स्नातक (विशुद्ध) कहते हैं। इन तीनों को नोसंज्ञोपयुक्त कहा गया हैॐ (१) बकुश-शरीर और उपकरण की विभूषा के लिए अपने चारित्र में दोष लगाने वाले।
45 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 55555 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。
| तृतीय स्थान
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Third Sthaan
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