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5 55555555555555 ॐ १८०. प्रव्रज्या तीन प्रकार की है-(१) इहलोक प्रतिबद्धा-(इहलौकिक सुखों की प्राप्ति में लिए 5 म अंगीकार की जाने वाली) प्रव्रज्या, (२) परलोक प्रतिबद्धा-(परलोक सम्बन्धी सुखों की प्राप्ति के लिए
स्वीकार की जाने वाली) प्रव्रज्या और द्वयलोक प्रतिबद्धा-(दोनों लोकों में सुखों की प्राप्ति के लिए ग्रहण ॐ की जाने वाली) प्रव्रज्या। १८१. प्रव्रज्या तीन प्रकार की है-(१) पुरतः प्रतिबद्धा-(भविष्य में शिष्य
आदि की प्राप्ति की कामना से ली जाने वाली) प्रव्रज्या, (२) पृष्ठतः प्रतिबद्धा-(पीछे के स्वजनादि के
साथ स्नेहसम्बन्ध विच्छेद होने के कारण उनके साथ रहने की भावना से प्रतिबद्ध) प्रव्रज्या, और म (३) उभयतः प्रतिबद्ध-(आगे के शिष्य आदि और पीछे के स्वजन आदि के स्नेह आदि से प्रतिबद्ध)
प्रव्रज्या। १८२. प्रव्रज्या तीन प्रकार की है-(१) तोदयित्वा-(डराकर अथवा कष्ट देकर दी जाने वाली) प्रव्रज्या, (२) प्लावयित्वा-(दूसरे स्थान पर ले जाकर दी जाने वाली) प्रव्रज्या, और (३) वाचयित्वा- (बातचीत करके दी जाने वाली) प्रव्रज्या। १८३. प्रव्रज्या तीन प्रकार की है-(१) अवपात-(गुरु-सेवा
के लिए ली जाने वाली) प्रव्रज्या, (२) आख्यात-(उपदेश से प्रतिबद्ध होकर ली जाने वाली) प्रव्रज्या, ॐ और (३) संगार-(परस्पर प्रतिज्ञाबद्ध या शर्त लगाकर ली जाने वाली) प्रव्रज्या।
180. Pravrajya (ascetic-initiation) is of three kinds—(1) iha-lok pratibaddha pravrajya (ascetic-initiation aimed at happiness during this
life), (2) par-lok pratibaddha pravrajya (ascetic-initiation aimed at 卐 happiness during next life), and (3) dvaya-lok pratibaddha prauraiya
(ascetic-initiation aimed at happiness during both current as well as next a life). 181. Pravraiva (ascetic-initiation) is of three kinds-(1)
pratibaddha pravrajya (ascetic-initiation accepted with a wish to gain i disciples and followers in future), (2) prishthatah pratibaddha pravrajya 4
(ascetic-initiation accepted with a wish to regain good relations, with
relatives and friends, that were terminated in the past), and (3) ubhayatah 5 pratibaddha pravrajya (ascetic-initiation accepted with a wish to gain
affection of both disciples in future and relatives from the past). 182. Pravrajya (ascetic-initiation) is of three kinds—(1) todayitva pravrajya 41 (ascetic-initiation enforced through fear or intimidation), (2) plavayitva pravrajya (ascetic-initiation enforced after shifting to other place), and (3)
vachayitva pravrajya (ascetic-initiation given after talking and convincing). 55 183. Pravrajya (ascetic-initiation) is of three kinds-(1) avapaat pravrajya
(ascetic-initiation accepted in order to serve the guru), (2) akhyaat pravrajya (ascetic-initiation accepted after getting enlightened by a discourse), and (3)
sangaar pravrajya (ascetic-initiation accepted by commitment or a wager). ॐ विवेचन-टीकाकार अभयदेवसूरि ने जोदयित्वा प्रव्रज्या के लिए 'सागरचन्द्र' का, प्लावयित्वा दीक्षा 5
के लिए आर्यरक्षित का और वाचयित्वा दीक्षा के लिए गौतमस्वामी से वार्तालाप कर दीक्षा लेने वाले ऊ हालिक किसान का उल्लेख किया है। इसी प्रकार आख्यातप्रव्रज्या के लिए फल्गुरक्षित का और 5
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स्थानांगसूत्र (१)
(222)
Sthaananga Sutra (1)
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