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________________ FFFFFFFhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhFFFFFFFFFFFFFF 55 # धम्मायरियं दुभिक्खाओ वा देसाओ सुभिक्खं देसं साहरेज्जा, कंताराओ वा णिक्कंतारं करेग्जा, दीहकालिएणं वा रोगातंकेणं अभिभूतं समाणं विमोएज्जा, तेणावि तस्स धम्मायरियस्स दुप्पडियारं । भवति। अहे णं से तं धम्मायरियं केवलिपण्णत्ताओ धम्माओ भट्टं समाणं भुज्जोविक में केवलिपण्णत्ते धम्मे आघवइत्ता पण्णवइत्ता परूवइत्ता ठावइत्ता भवति, तेणामेव तस्स धम्मायरियस्स । सुप्पडियारं भवति। ८७. भगवान ने कहा-"आयुष्मान् श्रमणो ! ये तीन पद दुष्प्रतिकार हैं (-इनसे ऋण-मुक्त होना दुःशक्य है)-(१) माता-पिता, (२) भर्ता (पालन-पोषण करने वाला स्वामी), और (३) धर्माचार्य। (१) कोई पुरुष (पुत्र) अपने माता-पिता का प्रातःकाल होने पर शतपाक और सहस्रपाक तेलों से मालिश कर. सगन्धित चर्ण से उबटन कर. सगन्धित जल. शीतल जल एवं उष्ण जल से स्नान कराकर. सर्व अलंकारों से उन्हें विभूषित कर, अठारह प्रकार के स्थाली-पाक शुद्ध व्यंजनों से युक्त भोजन कराकर, जीवन-पर्यन्त पृष्ट्यवतंसिका-(पीठ पर बैठाकर या कावड़ में बिठाकर कन्धे से) उनका के परिवहन करे, तो भी वह उनके (माता-पिता के) उपकारों से ऋण-मुक्त नहीं हो सकता। आयुष्मान् में श्रमणो ! वह उनसे तभी ऋण-मुक्त हो सकता है जबकि उन माता-पिता को सम्बोधित कर, धर्म का म स्वरूप और उसके भेद-प्रभेद बताकर केवलि-प्ररूपित धर्म में स्थापित करता है। 2 (२) कोई धनवान व्यक्ति किसी दरिद्र पुरुष का धनादि से समुत्कर्ष करता है। उसे ऊँचा उठाता है। " संयोगवश कुछ समय के बाद या शीघ्र ही वह दरिद्र, विपुल भोग-सामग्री से सम्पन्न हो जाता है और वह उपकार करने वाला धनिक किसी समय दरिद्र होकर सहायता की इच्छा से उसके पास आता है। म उस समय वह भूतपूर्व दरिद्र अपने पहले वाले स्वामी को सब कुछ अर्पण करके भी उसके उपकारों से ऋण-मुक्त नहीं हो सकता है। वह उसके उपकार से तभी ऋण-मुक्त हो सकता है जबकि उसे ॥ समझाकर, धर्म का स्वरूप और उसके भेद-प्रभेद बताकर केवलि-प्ररूपित धर्म में स्थिर करता है। (३) कोई व्यक्ति तथारूप श्रमण माहन के (धर्माचार्य के) पास एक भी श्रेष्ठ धार्मिक सुवचन सुनकर, म हृदय में धारण कर मृत्युकाल में मरकर, किसी देवलोक में देव रूप से उत्पन्न होता है। किसी समय वह क देव अपने धर्माचार्य को दुर्भिक्ष वाले प्रदेश से सुभिक्ष वाले प्रदेश में लाकर रख दे, जंगल से बस्ती में ले जाये या दीर्घकालीन रोगातंक से पीड़ित होने पर उन्हें उससे मुक्त कर दे, तो भी वह देव उस धर्माचार्य 5 के उपकार से उऋण नहीं हो सकता है। वह उनसे तभी ऋण-मुक्त हो सकता है जब कदाचित् उस धर्माचार्य के केवलि-भाषित धर्म से भ्रष्ट हो जाने पर उसे सम्बोधित कर, धर्म का स्वरूप और उसके 9 भेद-प्रभेद बताकर केवलि-प्ररूपित धर्म में स्थापित करता है। 87. Bhagavan said—“Long lived Shramans ! Three relations are dushpratikar (difficult to recompense)-(1) parents, (2) protector fi guardian (bharta), and (3) religious head. 555555555555555555555555$$$$$$$$$$$$$$$$$$FFFFFFFF गृतीय स्थान (197) Third Sthaan % %%%%% %%%%%%%%%%%%%%%%牙牙乐园 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
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