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4 51. Purush (males) are of three kinds-(1) tiryakyonik purush (male | of animal), (2) manushya purush (male of humans), and (3) deva purush
(male divine beings). 52. Tiryakyonik purush are of three kinds-- (1) jalachar (aquatic), (2) sthalachar (terrestrial), and (3) khechar (avian). 53. Manushya purush are of three kinds—(1) karmabhumij, (2) akarmabhumij, and (3) antardveepaj. नपुंसक-पद NAPUMSAK-PAD (SEGMENT OF NEUTERS)
५४. तिविहा णपुंसगा पण्णत्ता, तं जहा-णेरइय णपुंसगा, तिरिक्खजोणिय णपुंसगा, मणुस्स + णपुंसगा। ५५. तिरिक्खजोणियणपुंसगा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-जलयरा, थलयरा, खहयरा।
५६. मणुस्स णपुंसगा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-कम्मभूमिगा, अकम्मभूमिगा, अंतरदीवगा। ॐ ५४. नपुंसक तीन प्रकार के होते हैं-(१) नैरयिक नपुंसक, (२) तिर्यग्योनिक नपुंसक, और (३) + मनुष्य नपुंसक। ५५. तिर्यग्योनिक नपुंसक तीन प्रकार के होते हैं-(१) जलचर, (२) स्थलचर, और
(३) खेचर। ५६. मनुष्य नपुंसक तीन प्रकार के होते हैं-(१) कर्मभूमिज, (२) अकर्मभूमिज, और (३) अन्तर्वीपज (देवगति में नपुंसक नहीं होते)।
54. Napumsak (neuters) are of three kinds--(1) nairayik napumsak (neuter infernal beings), (2) tiryakyonik napumsak (neuter animal), 卐 and (3) manushya napumsak (neuter humans). 55. Tiryakyonik
napumsak are of three kinds (1) jalachar (aquatic), (2) sthalachar ॥ (terrestrial), and (3) khechar (avian). 56. Manushya napumsak are of three kinds—(1) karmabhumij, (2) akarmabhumij, and (3) antardveepaj. (there are no neuters among divine beings) तिर्यग्योनिक-पद TIRYAGYONIK-PAD (SEGMENT OF ANIMALS)
५७. तिविहा तिरिक्खजोणिया पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा।
५७. तिर्यग्योनिक जीव तीन प्रकार के होते हैं-(१) स्त्री तिर्यंच, (२) पुरुष तिर्यंच, और (३) नपुंसक तिर्यंच। 5 57. Tiryakyonik jiva (animals) are of three kinds—(1) stree tiryanch
(female animals), (2) purush tiryanch (male animals), and (3) napumsak # tiryanch (neuter animals).
विवेचन-नारकों में केवल एक नपुंसक वेद होता है। शेष तीन गति के जीवों में स्त्रियों का होना कहा ॐ गया है। तिर्यग्योनि के जीव तीन प्रकार के होते है-(१) जलचर-मत्स्य, मेंढक आदि। (२) स्थलचर-बैल, के
हाथी आदि। (३) खेचर-मोर, कबूतर, बगुला आदि। मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं-(१) कर्मभूमिज, ॐ (२) अकर्मभूमिज, और (३) अन्तर्वीपज। जहाँ पर मषि, असि, कृषि आदि कर्मों के द्वारा जीवननिर्वाह + किया जाता है, उसे कर्मभूमि कहते हैं। शेष हैमवत आदि क्षेत्रों में तथा सुषम-सुषमा आदि तीन कालों के
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Third Sthaan
| तृतीय स्थान
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