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तिर्यंच प्रकृति-जन्य कल्पवृक्षों द्वारा प्रदत्त भोगों को भोगते हैं। उक्त दो जाति के अतिरिक्त लवण समुद्रों आदि के भीतर स्थित द्वीपों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों को अन्तद्वपज कहते हैं ।
में उत्पन्न हुए मनुष्य - तिर्यंचों को अकर्मभूमिज या भोगभूमिज कहा जाता है, क्योंकि वहाँ के मनुष्य और 5
लेश्या - पद LESHYA-PAD (SEGMENT OF SOUL COMPLEXION)
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Elaboration-There is only one physical gender (veda) among infernal beings-neuter. Females exist in all the remaining three genuses. In the animal world there are three kinds of beings-(1) jalachar or aquatic, such as fish and frog ; ( 2 ) sthalachar or terrestrial, such as bull and elephant; and (3) khechar or avian, such as peacock and pigeon. Human F beings are of three kinds-(1) karmabhumij, (2) akarmabhumij, and (3) antardveepaj. Karmabhumi (land of action) is place where people subsist on work, such as farming, branding weapons, writing etc. There are areas like Haimavat area and epochs like Sukham-sukhama where human beings and even animals survive on things provided by kalp- 卐 vrikshas (wish fulfilling trees). These humans and animals are called akarmabhumij (belonging to the land of no work) or bhogbhumij (belonging to the land of enjoyment ). Besides these, humans born on 5 islands in the Lavan and other Samudras (the seas separating continents) are called antardveepaj (belonging to the middle islands).
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५८. णेरइयाणं तओ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा । ५९. असुरकुमाराणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा । ६०. एवं जाव थणियकुमाराणं । ६१. एवं - पुढविकाइयाणं आउ - वणस्सतिकाइयाण वि । ६२. तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं बेइंदयाणं तेइंदयाणं चउरिंदियाणवि तओ लेस्सा, जहा णेरइयाणं । ६३. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहाकण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा । ६४. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ असंकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा । ६५-६६. एवं मणुस्साण वि। ६७. वाणमंतराणं जहा असुरकुमाराणं । ६८. वेमाणियाणं तओ लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहातेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा ।
५८. नैरयिकों में तीन लेश्याएँ होती हैं- (१) कृष्णलेश्या, (२) नीललेश्या, और (३) कापोतलेश्या । ५९. असुरकुमारों में तीन अशुभ लेश्याएँ हैं- (१) कृष्णलेश्या, (२) नीललेश्या, और (३) कापोतलेश्या । ६०. इसी प्रकार स्तनितकुमार तक के सभी भवनवासी देवों में तीनों अशुभ ( संक्लिष्ट) लेश्याएँ हैं । ६१. (१) पृथ्वीकायिक, (२) अप्कायिक, और (३) वनस्पतिकायिक जीवों में भी तीनों अशुभ लेश्याएँ
Sthaananga Sutra (1)
स्थानांगसूत्र (१)
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