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२०. तिर्हि ठाणेहिं जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - णो पाणे अतिवादित्ता भवइ, णो मुसं वदित्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा वंदित्ता णमंसित्ता सक्कारित्ता सम्माणित्ता कल्लाणं मंगलं, देवतं चेतितं पज्जुवासेत्ता मणुष्णेणं पीतिकारएणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिला भेत्ता भवइ; इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति ।
२०. तीन प्रकार से जीव शुभ दीर्घायुष्य कर्म का बन्ध करते हैं - (१) जीव हिंसा न करने से, (२) मृषावाद न बोलने से, और (३) तथारूप श्रमण माहन को वन्दना - नमस्कार कर, उनका सत्कारसम्मान कर, कल्याण कर, मंगल देवरूप तथा चैत्यरूप मानकर उनकी पर्युपासना कर उन्हें मनोज्ञ एवं प्रीतिकर अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य आहार का प्रतिलाभ करने से । उक्त तीन प्रकारों से जीव शुभ दीर्घायुष्य कर्म का बन्ध करते हैं।
5 गुप्ति - अगुप्ति - पद GUPTI-AGUPTI-PAD (SEGMENT OF RESTRAINT AND IRRESTRAINT) २१. तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- मणगुत्ती, वइगुत्ती, कायगुत्ती । २२. संजयमणुस्साणं तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- मणगुत्ती, वइगुत्ती, कायगुत्ती । २३. तओ अगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - मणअगुत्ती, वइअगुत्ती, कायअगुत्ती । एवं णेरइयाणं जाव थणियकुमाराणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं असंजतमणुस्साणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं ।
20. A soul acquires bondage of shubh deergh-ayushya karma (karma responsible for noble long life span) three ways-(1) by avoiding pranatipat (destroying life ), ( 2 ) by avoiding mrishavad (telling a lie), and ( 3 ) by offering obeisance and homage, welcoming and respecting, wishing their beatitude and exaltation, offering them worship like a deity and temple and then giving relishable (manojna) and delightful (preetikar) 卐 ashan, paan, khadya, svadya ahar (staple food, liquids, general food and savoury food) to shramans or mahans (terms for Jain ascetic) as described in scriptures (tatharupa). A soul acquires bondage of karma responsible for long life span these three ways.
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२१. गुप्ति तीन प्रकार की है - ( १ ) मनोगुप्ति, (२) वचनगुप्ति, और (३) कायगुप्ति । २२. संयत मनुष्य के तीनों गुप्तियाँ होती हैं - (9) मनोगुप्ति, (२) वचनगुप्ति, और (३) कायगुप्ति । २३. अगुप्ति तीन 5 प्रकार की है - ( 9 ) मन - अगुप्ति, (२) वचन-- अगुप्ति, और (३) काय - अगुप्ति । इस प्रकार नारकों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों के, पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकों के, असंयत मनुष्यों के, वाणव्यन्तर देवों के, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के तीनों ही अगुप्तियाँ कही गई हैं ( मन, वचन, काय के संयम को गुप्ति और संयम न रखने को अगुप्ति कहते हैं) ।
21. Gupti ( restraint ) is of three kinds – (1) manogupti (mental frestraint ), ( 2 ) vachan-gupti (vocal restraint ), and ( 3 ) kayagupti (physical
तृतीय स्थान
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Third Sthaan
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