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卐 विवेचन - विशिष्ट पदों का अर्थ इस प्रकार है- संयम - साधना के अनुरूप वेष के धारक श्रमण को
described in scriptures (tatharupa). A soul acquires bondage of karma responsible for long life span these three ways.
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5 तथारूप कहते हैं। अहिंसा का उपदेश देने वाले को माहन कहते हैं। खानपान की सजीव वस्तुओं को
卐 अप्रासुक और साधु के लिए अशुद्ध ग्राह्य खाद्य आदि पदार्थ को अनेषणीय कहते हैं। दाल, भात, रोटी
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फ आदि आहार अशन। पीने के योग्य पदार्थ पान, फल, मेवा आदि खाद्य तथा लौंग, इलायची आदि स्वाद
5 लेने योग्य पदार्थों को स्वाद्य कहा जाता है।
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TECHNICAL TERMS
Tatharupa-a shraman suitably dressed for ascetic practices or with
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an appearance as described in scriptures. Mahan-one who preaches
5 ahimsa Aprasuk — food that is contaminated with living organism. 5
5 Aneshaniya-food that is impure and unsuitable for an ascetic. Ashan - 5
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staple food such as pulses, rice and bread. Paan-liquids such as water.
Khadya-general food such as fruits and dry-fruits. Svadya ahar
savoury food such as one flavoured with clove, cardamom etc.
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卐 १९. तिर्हि ठाणेहिं जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - पाणे अतिवातित्ता भवइ,
मुसं वइत्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता निंदित्ता खिंसित्ता गरहित्ता अवमाणित्ता
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फ अण्णयरेणं अमणुणेणं अपीतिकारणएणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिला भेत्ता भवइ; इच्चेतेहिं तिहि ठाणेहिं जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति ।
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१९. तीन प्रकार से जीव अशुभ दीर्घायुष्य कर्म का बन्ध करते हैं - (१) जीव हिंसा करने से,
(२) मृषावाद बोलने से, और (३) तथारूप श्रमण माहन की अवहेलना, निन्दा, अवज्ञा, गर्हा और
5 अपमान कर कोई अमनोज्ञ तथा अप्रीतिकर अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य का प्रतिलाभ करने से। इन तीन
प्रकारों से जीव अशुभ दीर्घ आयुष्य कर्म का बन्धन करते हैं।
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卐 19. A soul acquires bondage of ashubh deergh-ayushya karma (karma
responsible for ignoble long life span) three ways-(1) by pranatipat
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15 (avahelana), censuring (ninda), disrespecting (avajna ), reproaching 5 (garha) and insulting (apaman) and then giving repulsive (amanojna ) and loathsome (apreetikar) ashan, paan, khadya, svadya ahar (staple
food, liquids, general food and savoury food) to a shraman or mahan
(destroying life), (2) by mrishavad (telling a lie), and (3) by neglecting
(terms for Jain ascetic) as described in scriptures (tatharupa). A soul
acquires bondage of karma responsible for ignoble long life span these
three ways.
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5 स्थानांगसूत्र (१)
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Sthaananga Sutra (1)
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