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855555555555555555555॥॥5555555555
卐 करण-पद KARAN-PAD (SEGMENT OF MEANS)
१५. तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा-मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, एवं विगलिंदियवज्जं + जाव वेमाणियाणं। १६. तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा-आरंभकरणे, संरंभकरणे, समारंभकरणे। मणिरंतरं जाव वेमाणियाणं।
१५. करण तीन प्रकार का है-(१) मनःकरण, (२) वचनकरण, और (३) कायकरण। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर शेष सभी दण्डकों में तीनों ही करण होते हैं। १६. करण तीन प्रकार का कहा है-(१) आरम्भकरण, (२) संरम्भकरण, और (३) समारम्भकरण। ये तीनों ही करण वैमानिकपर्यन्त सभी दण्डकों में होते हैं।
15. Karan (means) is of three kinds—manah-karan (mental means), 9 (2) vachan-karan (vocal means), and (3) kayakaran (physical means). -
Besides vikalendriyas (one sensed to four sensed beings) beings belonging to all dandaks (places of suffering) up to Vaimaniks have all these three means. 16. Karan (means or performance) is of three kindsaarambh-karan (destructive performance), (2) samrambh-karan (desire to perform), and (3) samaarambh-karan (hurtful performance). Besides vikalendriyas (one sensed to four sensed beings) beings belonging to all
dandaks (places of suffering) up to Vaimaniks have all these three 卐 performances.
विवेचन-वीर्यान्तराय कर्म के क्षय या क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली जीव की शक्ति या वीर्य को योग कहा जाता है। तत्त्वार्थसूत्र में मन, वचन और काय की क्रिया को योग कहा है। योग के निमित्त से 5 ही कर्मों का आस्रव और बन्ध होता है। मन की प्राप्ति मनोयोग है, वचन की प्राप्ति वचनयोग और काय की प्राप्ति काययोग होता है। मन, वचन और काय की प्रवृत्ति को प्रयोग कहते हैं। योगों के संरम्भसमारम्भादि रूप परिणमन को करण कहते हैं। जैसे-जीवों के घात का मन में संकल्प करना संरम्भ है,
उक्त जीवों को सन्ताप पहुँचाना समारम्भ है और उनका घात करना आरम्भ है। इस प्रकार योग, प्रयोग फ़ और करण इन तीनों के द्वारा जीव कर्मों का आस्रव और बन्ध करते रहते हैं। साधारणतः योग, प्रयोग )
और करण को एकार्थक भी कहा गया है। (देखें स्थानांग वृत्ति, पृष्ठ १८३)
Elaboration—The energy or potency (virya) emerging in a soul due to destruction or destruction-cum-pacification of Viryantaraya karma (potency hindering karma) is called yoga. According to Tattvarth Sutra the activities associated with mind, speech and body are called yoga. The inflow and bondage of karmas are caused by yoga only. Association of 4 mind in an activity is manoyog, that of speech is vachan-yoga and that of body is kayayoga. Indulgence in specific activities of mind, speech and body is called prayoga. Performance manifesting through yoga is called
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9595555555555555 985555555555555555550
स्थानांगसूत्र (१)
(178)
Sthaananga Sutra (1)
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