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४५५. दोसु कप्पेसु देवा तेउलेस्सा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मे चेव, ईसाणे चेव। ४५६. दोसुई कप्पेसु देवा कायपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मे चेव, ईसाणे चेव। ४५७. दोसु कप्पेसु देवा, फासपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-सणंकुमारे चेव, माहिदे चेव। ४५८. दोसु कप्पेसु देवा ॥
रूवपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-बंभलोगे चेव, लंतगे चेव। ४५९. दोसु कप्पेसु देवा सद्दपरियारगा , ॐ पण्णत्ता, तं जहा-महासुक्के चेव, सहस्सारे चेव। ४६०. दो इंदा मणपरियारगा पण्णत्ता, तंभ
जहा-पाणए चेव, अच्चुए चेव। म ४५५. दो कल्पों में देव तेजोलेश्या वाले होते हैं-सौधर्मकल्प और ईशानकल्प में। ४५६. सौधर्म
और ईशान-इन दो कल्पों में देव काय-परिचारक (काय से रति-क्रीड़ा करने वाले) होते हैं। ॐ ४५७. सनत्कुमारकल्प में और माहेन्द्रकल्प के देव स्पर्श-परिचारक (देवी के स्पर्शमात्र से कामेच्छा 卐 पूर्ति करने वाले) होते हैं। ४५८. ब्रह्मलोक और लान्तककल्प इन दो कल्पों में देव रूप परिचारक
(देवी का रूप देखकर कामेच्छा पूर्ति करने वाले) होते हैं। ४५९. महाशुक्रकल्प और सहस्रारकल्प इन ॐ दो कल्पों में देव शब्द-परिचारक (देवी के शब्द सुनकर कामेच्छा पूर्ति करने वाले) होते हैं। ४६०. दो ॥ म इन्द्र मनःपरिचाक (मन में देवी का स्मरण कर कामेच्छा पूर्ति करने वाले) होते हैं-प्राणतेन्द्र और अच्युतेन्द्र। (विस्तृत वर्णन के लिए प्रज्ञापनासूत्र, पद ३४वाँ की मलयगिरि वृत्ति देखें)
455. In two kalps gods are endowed with tejoleshya (fire power)Saudharm Kalp and Ishan Kalp. 456. In two kalps gods are kaya
paricharak (satisfy their carnal desires with their body)–Saudharm 45 Kalp and Ishan Kalp. 457. In two kalps gods are sparsh-paricharak 41 (satisfy their carnal desires by mere touch of the goddess)-Sanatkumar
Kalp and Mahendra Kalp. 458. In two kalps gods are rupa-paricharak (they satisfy their carnal desires by mere look of the goddess)---Brahm- 4 lok and Lantak Kalp. 459. In two kalps gods are shabd-paricharak (satisfy their carnal desires by mere listening to the words of goddess)Mahashukra Kalp and Sahasrar Kalp. 460. Two Indras (overlords of
gods) are manah-paricharak (satisfy their carnal desires by mere 卐 thought of the goddess)-Pranatendra and Achyutendra. (for detailed
description refer to Malayagiri Vritti of Prajnapana Sutra, verse 34) म पाप-कर्म-पद PAAP-KARMA-PAD (SEGMENT OF DEMERITORIOUS KARMAS)
४६१. जीवाणं दुट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा-तसकायणिव्वत्तिए चेव, थावरकायणिव्वत्तिए चेव।
४६१. जीवों ने द्विस्थान-निवर्तित पुद्गलों को पापकर्म के रूप में चय किया है, करते हैं और करेंगेत्रसकाय-निर्वर्तित (त्रसकाय के रूप में उपार्जित) और स्थावरकाय-निर्वर्तित (स्थावरकाय के रूप में उपार्जित)।
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स्थानांगसूत्र (१)
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Sthaananga Sutra (1)
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