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461. Jivas (souls ) did, do and will attract (chaya ) particles in the form फ of paap-karma (demeritorious karmas) in two ways - tras - kaya nirvartit 5 (earned as mobile beings) and sthavar-kaya nirvartit (earned as immobile beings).
४६२. जीवाणं दुट्ठाणणिव्यत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए उवचिणिंसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा, बंधिंसु वा बंधेति वा बंधिस्संति वा, उदीरिंसु वा उदीरेंति वा उदीरिस्संति वा, वेदेंसु वा वेदेंति वा वेदिस्संति वा, णिज्जरिंसु वा णिज्जरेंति वा णिज्जरिस्संति वा, तं जहातसकायणिव्यत्तिए चेव, थावरकायणिव्यत्तिए चेव ।
४६२. जीवों ने द्विस्थान - निर्वर्तित पुद्गलों का पाप कर्म के रूप में उपचय किया है, करते हैं और करेंगे। उदीरण किया है, करते हैं और करेंगे। वेदन किया है, करते हैं और करेंगे। निर्जरण किया है, फ्र करते हैं और करेंगे, यथा - सकाय - निर्वर्तित और स्थावरकाय - निर्वर्तित।
विवेचन-विशेष शब्दों के अर्थ- 'चय' आत्म-प्रदेशों द्वारा कर्म परमाणुओं का संग्रह है। उपचय - कर्मों की वृद्धि, बन्ध - आत्मा के साथ कर्मों का बंधन। उदीरण- जो कर्म अभी उदय में नहीं आये हैं, उन्हें उदय में लाना । वेदन- उदय प्राप्त कर्मों का फल भोगना । निर्जरण- फल भोग के पश्चात् कर्मों का आत्मा से पृथक् हो जाना । कर्मों के ये सभी चय- उपचयादि त्रसकाय और स्थावरकाय के जीव ही करते हैं, अतः उन्हें सकाय - निर्वर्तित और स्थावर काय - निर्वर्तित कहा गया है।
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462. Jivas (souls ) did, do and will augment ( upachaya ), fructify 5 (udiran), experience ( vedan) and shed ( nirjaran ) particles in the form of फ्र paap-karmı (demeritorious karmas) in two ways-tras-kaya nirvartit (earned as mobile beings) and sthavar-kaya nirvartit (earned as immobile beings).
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be precipitated. Vedan-to suffer consequences of the precipitated karmas. Nirjaran-separation of soul from karmas after suffering the F consequences. As all these processes apply only to mobile and immobile i beings they are called tras-kaya nirvartit (earned as mobile beings) and sthavar-kaya nirvartit (earned as immobile beings).
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Elaboration-Chaya - acquisition of karma particles by soul-space
f points. Upachaya - augmentation of karmas. Bandh — bondage of soul फ्र Fi with karmas. Udiran-to cause fruition or precipitation of karmas yet to
पुद्गल - पद PUDGAL-PAD (SEGMENT OF MATTER)
४६३. दुपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता । ४६४. दुपएसोगाढा पोग्गला अनंता पण्णत्ता । ४६५. एवं जाव दुगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।
द्वितीय स्थान
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Second Sthaan
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