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435. Aradhana (spiritual practice) is of two kinds-dharmik aradhana (spiritual practice done by shravak or layman and sadhu or ascetic) and kaivaliki aradhana (spiritual practice done by omniscient). 436. Dharmik aradhana is of two kinds--shrut dharma aradhana (practice related to scriptures) and charitra dharma aradhana (practice related to conduct). 437. Kaivaliki aradhana is of two kinds-antakriya rupa (practice related to liberation) and kalp-vimanopapattika (practice related to birth in kalp-vimans).
. विवेचन-यहाँ कैवलिकी आराधना से श्रुतकेवली, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी और केवलज्ञानी-इन म चारों का ग्रहण किया गया है।
सम्पूर्ण कर्म क्षय करके मुक्त होना अन्तक्रिया आराधना है। ग्रैवेयक, अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने के म योग्य आराधना कल्प विमानोपपत्तिका आराधना है। यह श्रुतकेवली आदि के होती है। (अभयदेवसूरि कृतम वृत्ति, पृष्ठ १६७)
Elaboration-Here Kaivaliki aradhana includes the spiritual practice fi of Shrut Kevali (the knower of the complete canon inclusive of the _fourteen subtle canon or the Purvas), Avadhi jnani, Manahparyav jnani and Keval jnani (those endowed with the specific knowledge).
To get liberated after destroying all karmas is Antakriya aradhana. Kalp-vimanopapattika aradhana is the practice leading to reincarnation in Graiveyak and Anuttar vimaans (the higher levels of divine
dimension). This is done by the aforesaid accomplished sages including Fi Shrut Kevalis. (Vritti by Abhayadev Suri, p. 167) तीर्थंकर-वर्ण-पद TIRTHANKAR-VARNA-PAD
(SEGMENT OF COMPLEXION OF TIRTHANKARS) # ४३८. दो तित्थगरा णीलुप्पलसमा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-मुणिसुब्बए चेव, अरिट्ठणेमी
चेव। ४३९. दो तित्थगरा पियंगुसमा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-मल्ली चेव, पासे चेव। ४४०. दो # तित्थगरा पउमगोरा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-पउमप्पहे चेव, वासुपुज्जे चेव। ४४१. दो तित्थगरा चंदगोरा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-चंदप्पभे चेव, पुष्पदंते चेव।
४३८. दो तीर्थंकर नीलकमल के समान नीलवर्ण वाले हुए हैं-मुनिसुव्रत (२०) और अरिष्टनेमि। । (२२)। ४३९. दो तीर्थंकर प्रियंगु (कांगनी) के समान श्यामवर्ण वाले हुए हैं-मल्लिनाथ (१९) और 5 पार्श्वनाथ (२३)। ४४०. दो तीर्थंकर पद्म के समान लाल गौरवर्ण वाले हुए हैं-पद्मप्रभ (६) और
वासुपूज्य (१२)। ४४१. दो तीर्थंकर चन्द्र के समान श्वेत गौरवर्ण वाले हुए हैं-चन्द्रप्रभ (८) और 5 पुष्पदन्त (९)।
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द्वितीय स्थान
(165)
Second Sthaan
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